रविवार, जुलाई 10, 2016

समीक्षा "मुखर होता मौन-ग़ज़ल संग्रह" (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

"मुखर होता मौन" ग़ज़ल संग्रह
मेरी नज़र से
"वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।।"
     आमतौर पर देखने में आया है कि जो महिलाएँ लेखन कर रही हैं उनमें से ज्यादातर चौके-चूल्हे और रसोई की बातों को ही अपने ब्लॉगपर लगाती हैं। किन्तु
इन सबसे हटकर श्रीमती रेखा लोढ़ा स्मित ने इस मिथक को झुठलाते हुए, अपनी दैनिकचर्या में से कीमती समय निकाल कर उम्दा साहित्य स्रजन किया है।
     कुछ समय पूर्व मुझे डाक द्वारा इनका ग़ज़ल संग्रह मुखर होता मौन प्राप्त हुआ। पुस्तक के नाम और आवरण ने मुझे प्रभावित किया और मैं इसको पढ़ने के लिए स्वयं को रोक न सका। जबकि इससे पूर्व में प्राप्त हुई कई मित्रों की कृतियाँ मेरे पास समीक्षा के लिए कतार में हैं।
    रेखा लोढ़ा स्मित ने अपने ग़ज़ल संग्रह मुखर होता मौन में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल एक कवयित्री है बल्कि शब्दों की कुशल चितेरी भी हैं।
    इन्होंने अपने आत्मकथ्य में लिखा है-
     “मेरे घर-परिवार में दूर-दूर तक कोई लेखक या कवि नहीं हुआ। हाँ, साहित्य प्रेमी, रसिक-पाठक अवश्य मिल जायेंगे। फिर पता नहीं कहाँ से ये अंकुर मुझमें फूटा। माँ शारदा की विशेष कृपादृष्टि ही थी मुझ अकिंचन पर।...”
       कवयित्री ने अपनी पहली ग़ज़ल में मुखर होता मौन की शीर्षक रचना को स्थान दिया है-
"मिटे आज मन से मिरे फासले हैं
मुझे मौन अपने बहुत सालते हैं
कही-अनकही भी रही फाँस बनकर
मुखर मौन फिर आज होने लगे हैं"
     कवयित्री ने अपने काव्यसंग्रह की मंजुलमाला में एक सौ चवालीस पृष्ठ के इस संग्रह में 134 उम्दा ग़जलों के मोतियों को पिरोया है जिनमें जन-जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं की  संवेदनाओं पर तो अपनी अपनी ग़ज़ले प्रस्तुत की हैं साथ ही नदी, समन्दर, बादल, चाँद-सितारे, आँसू, पीड़ा, माँ दोस्ती, छल-फरेब आदि लौकिक और अलौकिक उपादानों को भी अपनी ग़ज़लों का विषय बनाया है।
इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
सितारों में दुनिया बसाई हुई
जमीनी हकीकत भुलाई हुई
पता है नहीं कल रहें या नहीं
बरस सौ की दौलत जमाई हुई
...
अदावत करें या बगावत करें
सिला प्यार का बेवफाई हुई”
      मुखर होता मौन ग़ज़ल संग्रह में कवयित्री ने लो उतरने लगीं झूठ की तख्तियाँ में अपनी अपनी व्यथा को कुछ इस प्रकार अपने शब्द दिये हैं-
“हार कर हैसलो से चली आँधियाँ
लो उतरने लगीं झूठ की तख्तियाँ
यूँ न निकलो सनम सज-सँवर कर कहीं
गिर न जाये कहीं हम पे ये बिजलियाँ
अतुकान्त रचनाओं की अपेक्षा छन्दबद्ध लिखना बहुत कठिन होता है। लेकिन जहाँ तक मुझे ज्ञात है कवयित्री ने अपनी सभी रचनाएँ छन्दबद्ध ही लिखीं हैं, वो चाहे दोहे हों, गीत हो या ग़जलें हो। देखिए उनकी इस ग़ज़ल की बानगी-
लोग वो जो वफा नहीं करते
प्यार उनके फला नहीं करते
राह में सत्य की चले जो भी
खार से वो रुका नहीं करते
...
हार जिन पर सदा रहा माँ का
मुस्किलों से डरा नहीं करते”
     समाज में व्याप्त हो रहे आडम्बरों पर भी करीने के साथ चोट करने में कवयित्री ने कोई कोताही नहीं की है-
अभी तीर हमने चलाया कहाँ है
अभी सच से परदा उठाया कहाँ है
जलाते रहे है फ़कत पुतले ही हम
कि रावण बताओ मिटाया कहाँ है”
    जन्मदात्री माता के प्रति कवयित्री ने अपनी वचनबद्धता व्यक्त करते हुए लिखा है-
भले नाराज़ हो पर वो अजीयत दे नहीं सकती
हमें तो माँ किसी भी हाल नफरत दे नहीं सकती”
     ग़ज़लों का काव्यसौष्ठव का बड़ा ही नाज़ुक होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने कुशलता के साथ किया है-
रात-दिन ये दिल जला क्या फायदा
राज़ तुमसे ही रहा क्या पायदा
सात जब देना नहीं था दूर तक
कुछ कदम चलकर हुआ क्या फायदा”
ग़ज़ल की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि इसके हरेक अशआर में वार्तालाप यानी बातचीत होती है। अगर बातचीत का यह सिलसिला नहीं है तो ग़ज़ल बेमानी होजाती है। इस बात का कवयित्री ने अपनी प्रत्येक ग़ज़ल में ध्यान रखा है।
 महफिलें यूँ ही सजाया कीजिए
बज़्म से मेरी न जाया कीजिए
याद काफी है सताने को हमें
अब न हमको यूँ सताया कीजिए”
मुखर होता मौन काव्यसंकलन को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री रेखा लोढ़ा स्मित ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त कविता और शृंगार की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक मुखर होता मौन काव्यसंकलन को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
मुखर होता मौन ग़ज़ल संग्रह को आप कवयित्री के पते 
सी-207, आलोक स्कूल रोड, सुभाष नगर
भीलवाड़ा (राजस्थान) 311001
दूरभाष– 01482-265044 तथा 
मोबाइल नम्बर- 09829610939
E-Mail . rekhalodhasmit@gmail.com है। 
बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा
पेपरबैक में छपी 144 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य मात्र रु. 125/- है।
दिनांकः 11-07-2016
                                  (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
                                     कवि एवं साहित्यकार
                                     टनकपुर-रोड, खटीमा
                        जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
Website.  http://uchcharan.blogspot.com.
फोन/फैक्सः 05943-250203
Mobile No. 9997996437, 7417619828 

शनिवार, मई 21, 2016

"गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग"

भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की। बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
·         सम्यक ज्ञान
बुद्ध के अनुसार धम्म है: -
·         जीवन की पवित्रता बनाए रखना
·         जीवन में पूर्णता प्राप्त करना
·         निर्वाण प्राप्त करना
·         तृष्णा का त्याग
·         यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं
·         कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का आधार मानना
बुद्ध के अनुसार अ-धम्म है: -
·         परा-प्रकृति में विश्वास करना
·         आत्मा में विश्वास करना
·         कल्पना-आधारित विश्वास मानना
·         धर्म की पुस्तकों का वाचन मात्र
बुद्ध के अनुसार सद्धम्म क्या है: -
1. जो धम्म प्रज्ञा की वृद्धि करे--
·         जो धम्म सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे
·         जो धम्म यह बताए कि केवल विद्वान होना पर्याप्त नहीं है
·         जो धम्म यह बताए कि आवश्यकता प्रज्ञा प्राप्त करने की है
2. जो धम्म मैत्री की वृद्धि करे--
·         जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा भी पर्याप्त नहीं है, इसके साथ शील भी अनिवार्य है
·         जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा और शील के साथ-साथ करुणा का होना भी अनिवार्य है
·         जो धम्म यह बताए कि करुणा से भी अधिक मैत्री की आवश्यकता है।
3. जब वह सभी प्रकार के सामाजिक भेदभावों को मिटा दे
·         जब वह आदमी और आदमी के बीच की सभी दीवारों को गिरा दे
·         जब वह बताए कि आदमी का मूल्यांकन जन्म से नहीं कर्म से किया जाए
·         जब वह आदमी-आदमी के बीच समानता के भाव की वृद्धि करे
(विकीपीडिया से साभार)

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2016

संस्मरण "ब्लॉगिंग के पुरोधा अविनाश वाचस्पति को नमन"

      कल जैसे ही इण्डरनेट खोला तो अविनाश वाचस्पति के निधन का दुखद समाचार पढ़ने को मिला। अविनाश जी से मेरे एक आत्मीय मित्र के सम्बन्ध थे। आघात सा लगा यह हृदयविदारक सूचना पढ़कर। 
    अविनाश वाचस्पति दसियों साल से हैपेटाइटिस-बी रोग की समस्या जूझ रहे थे। वह इस रोग से लड़ते रहे और जीतते रहे और अन्ततः कल 8 फरवरी को हैपेटाइटिस-बी जीत गया। मगर यह तो एक बहाना मात्र था। रोग का इलाज है मगर मत्यु का कोई इलाज नहीं है। देर-सबेर इस दुनिया से जाना तो सबको ही पड़ता है। व्यक्ति के दुनिया से जाने के बाद ही उसकी महत्ता का पता लगता है। लेकिन अविनाश वाचस्पति के निधन से मुझे व्यक्तिगत आघात पहुँचा है। मैं उनको शत्-शत् नमन करते हुए अपनी भाव-भीनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ।
इस सन्दर्भ में संस्मरणों की श्रंखला प्रस्तुत कर रहा हूँ।
       जब मैंने जनवरी सन 2009 से ब्लॉगिंग शुरू की थी। उस समय मुझे ब्लॉग के तौर-तरीकों का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। शुरूआती दौर में मुझे जिन गिने-चुने लोगों का साथ मिला था उनमें ताऊ रामपुरिया, अजित वडनेकर, आशीष खण्डेलवाल, डॉ.सिद्धेश्वर सिंह, बन्दना गुप्ता आदि के साथ-साथ अविनाश वाचस्पति का नाम भी प्रमुख था।
      अविनाश वाचस्पति उस शख्शियत का नाम था जो ब्लॉगर साथियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था।  
      उन दिनों इंडरनेट पर बातचीत का माध्यम केवल जी मेल ही था। अतः उसी पर ब्लॉगरों से बातें होती थी। अविनाश वाचस्पति से तो उन दिनों मेरी प्रायः रोज ही राम-जुहार हो जाती थी। उनका बार-बार यही आग्रह रहता था कि कभी दिल्ली आओ तो हमसे मिलो।
      आखिर मई 2010 में मेरा दिल्ली जाने का कार्यक्रम बन गया। मैंने जब बताया कि मैं दिल्ली आ रहा हूँ तो उनका जवाब था कि मिलने जरूर आना है। मैं 18 मई की रात को खटीमा से दिल्ली की बस में सवार हुआ तो रात में 10 बजे तक अविनाश के 3-4 बार फोन आते रहे। 19 मई को दिल्ली पहुँच कर मैं अपने साड़ू भाई के यहाँ उत्तम नगर चला गया। वहाँ सुबह के दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर मैं सुबह 9 बजे नेहरू प्लेस के लिए निकल गया। इस बीच अनिनाश वाचस्पति के फोन आते रहे।
       उन्होंने पूछा कि आप नेहरू प्लेस से कितने बजे तक फारिग हो जाओगे। मैंने उत्तर दिया कि मैं 12-1 बजे तक अपना काम निबटा लूँगा। तभी अविनाश जी ने कहा कि मेरा ऑफिस नेहरु प्लेस के नजदीक ही है। मैं आपको नेहरू प्लेस लेने आ जाऊँगा। और वो मुझे लेने के लिए आ गये। उनके कार्यालय में चाय पीने के बाद मैंने उनसे जाने के लिए विदा माँगी तो उन्होंने कहा कि भाई यह क्या बात हुई...आपको मेरे साथ लंच तो करना ही पड़ेगा। उनके आग्रह में बल था इसलिए मैं मना नहीं कर पाया। तब तक अपराह्न के साढ़े तीन बज गये थे। मुझे दिल्ली से घर के लिए निकलना भी था। वाचस्पति जी ने पूछा कि आपको कहाँ से बस मिलेगी?  
    मैंने कहा कि आनन्द विहार से।
     तब वाचस्पति ने कहा कि मैं आपको आनन्दविहार की बस में बैठा देता हूँ। और उन्होंने मुझे अपनी कार से निकटतम स्टैण्ड से आनन्दविहार की बस में बैठा दिया।
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शेेष भाग अगले संस्मरण में....