मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

"दोहे-धरती का शृंगार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

आओ अभिनन्दन करें, नये साल का आज।
श्रमिक-किसान-जवान से, जीवित देश समाज।१।
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गुलदस्ते में सजे हैं, सुन्दर-सुन्दर फूल।
सुमनों सा जीवन जियें, बैर-भाव को भूल।२।
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शस्य-श्यामला धरा है, जीवन का आधार।
आओ पौधों से करें, धरती का शृंगार।३।
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जनमानस पर कर रहे, कोटि-कोटि अहसान।
सबका भरते पेट हैं, ये श्रमवीर किसान।४।
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मातृभूमि के वास्ते, देते जो बलिदान।
रक्षा में संलग्न हैं, अपने वीर जवान।५।

3 टिप्‍पणियां:

  1. " सतसैया के दोहरा ज्यों के तीर । देखन मा छोटे लगे घाव करे गँभीर ॥"

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  2. "इतिहास थारू-बुक्सा जनजातियों का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कहां और कैसे मिलेगी

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