गुरुवार, मई 26, 2011

"पिकनिक में मामा-मामी उपहार में मिले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


पिकनिक में मामा-मामी उपहार में मिले!
यह बात 1966 की है। उन दिनों मैं कक्षा 11 में पढ़ रहा था। परीक्षा हो गईं थी और पूरे जून महीने की छुट्टी पड़ गई थी। इसलिए सोचा कि कहीं घूम आया जाए। तभी संयोगवश् मेरे मामा जी हमारे घर आ गये। वो उन दिनों जिला पिथौरागढ़ में ठेकेदारी करते थे। उन दिनों मोटरमार्ग तो थे ही नहीं इसलिए पहाड़ों के दुर्गम स्थानों पर सामान पहुँचाने का एक मात्र साधन खच्चर ही थे।
मेरे मामा जी के पास उन दिनों 20 खच्चर थीं जो आरएफसी के चावल को दुर्गम स्थानों तक पहुँचातीं थीं। दो खच्चरों के लिए एक नौकर रखा गया था इसलिए एक दर्जन नौकर भी थे। खाना बनाने वाला भी रखा गया था और पड़ाव बनाया गया था लोहाघाट। मैं पढ़ा-लिखा था इसलिए हिसाब-किताब का जिम्मा मैंने अपने ऊपर ही ले लिया था।
मुझे यहाँ कुछ दिनों तक तो बहुत अच्छा लगा। मैं आस-पास के दर्शनीय स्थान मायावती आश्रम और रीठासाहिब भी घूम आया था। मगर फिर लौटकर तो पड़ाव में ही आना था और पड़ाव में रोज-रोज आलू, अरहर-मलक की दाल खाते-खाते मेरा मन बहुत ऊब गया था। हरी सब्जी और तरकारियों के तो यहाँ दर्शन भी दुर्लभ थे। तब मैंने एक युक्ति निकाली जिससे कि मुझे खाना स्वादिष्ट लगने लगे।
मैं पास ही में एक आलूबुखारे (जिसे यहाँ पोलम कहा जाता था) के बगीचे में जाता और कच्चे-कच्चे आलूबुखारे तोड़कर ले आता। उनको सिल-बट्टे पर पिसवाकर स्वादिष्ट चटनी बनवाता और दाल में मिलाकर खाता था। दो तीन दिन तक तो सब ठीक रहा मगर एक दिन बगीचे का मालिक नित्यानन्द मेरे मामा जी के पास आकर बोला ठेकेदार ज्यू आपका भानिज हमारे बगीचे में से कच्चे पोलम रोज तोड़कर ले आता है। मामा जी ने मुझे बुलाकार मालूम किया तो मैंने सारी बता दी।
नित्यानन्द बहुत अच्छा आदमी था। उसने कहा कि ठेकेदार ज्यू तुम्हारा भानिज तो हमारा भी भानिज। आज से यह खाना हमारे घर ही खाया करेगा और मैं नित्यानन्द जी को मामा जी कहने लगा।

उनके घर में अरहर-मलक की दाल तो बनती थी मगर उसके साथ खीरे का रायता भी बनता था। कभी-कभी गलगल नीम्बू की चटनी भी बनती थी। जिसका स्वाद मुझे आज भी याद है। पहाड़ी खीरे का रायता उसका तो कहना ही क्या? पहाड़ में खीरे का रायता विशेष ढंग से बनाया जाता है जिसमें कच्ची सरसों-राई पीस कर मिलाया जाता है जिससे उसका स्वाद बहुत अधिक बढ़ जाता है। ऐसे ही गलगल नीम्बू की चटनी भी मूंगफली के दाने भूनकर-पीसकर उसमें भाँग के बीज पीसकर मिला देते हैं और ऊपर से गलगल नींबू का रस पानी की जगह मिला देते हैं। (भाँग के बीजों में नशा नहीं होता है)
एक महीने तक मैंने चीड़ के वनों की ठण्डी हवा खाई और पहाड़ी व्यंजनों का भी मजा लिया। अब सेव भी पककर तैयार हो गये थे और आलूबुखारे भी। जून के अन्त में जब मैं घर वापिस लौटने लगा तो मामा और मामी ने मुझे घर ले जाने के लिए एक कट्टा भरकर सेव और आलूबुखारे उपहार में दिये।
आज भी जब मामा-मामी का स्मरण हो आता है तो मेरा मन श्रद्धा से अभिभूत हो जाता है।
काश् ऐसी पिकनिक सभी को नसीब हो! जिसमें की मामा-मामी उपहार में मिल जाएँ!
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आज वो पहाड़ी मामा-मामी तो नहीं रहे मगर उनका बेटा नीलू आज भी मुझे भाई जितना ही प्यार करता है।
पहाड़ का निश्छल जीवन देखकर मेरे मन में बहुत इच्छा थी कि मैं भी ऐसे ही निश्छल वातावरण में आकर बस जाऊँ और मेरा यह सपना साकार हुआ 1975 में। मैं पर्वतों में तो नहीं मगर उसकी तराई में आकर बस गया।

शनिवार, मई 07, 2011

"खटीमा मॉर्निंग ने भी अपना दायित्व निभाया"

खटीमा (उत्तराखण्ड) से प्रत्येक बृहस्पतिवार को
प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचारपत्र
5 मई से 11 मई के अंक में
पृष्ठ-10 पर
"खटीमा मॉर्निंग" ने भी
 "कविमंच" पर पूरा पृष्ठ 
मेरे सम्मान में प्रकाशित किया!
(छवि पर क्लिक करिए और पढ़ लीजिए)
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30 अप्रैल, 2011 को हिन्दी भवन, दिल्ली में
सम्मानित होने का समाचार यह है!
(छवि पर क्लिक करिए और पढ़ लीजिए)

सोमवार, मई 02, 2011

"हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"


हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह
दिनांक-30 अप्रैल, 2011
हिन्दी भवन, नई दिल्ली

दिनांक 30 अप्रैल, 20011 को हिन्दी भवन, नई दिल्ली मे परिकल्पना समूह और हिन्दी साहित्य निकेतन के संयुक्त तत्वावधान में हिन्दी ब्लॉग जगत में सकारात्मक योगदानके लिए वर्ष 2010 के अन्तर्गत चयनित इक्यावन ब्लॉगरों तथा 10 पत्रकारों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री माननीय डॉ. रमेश पोखरियाल ने उन्हें प्रमाणपत्र स्मृतिचिह्न तथा उपहारस्वरूप साहित्य निकेतन की पुस्तकें भी भेंट की गईं।
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अतिथि ब्लॉगरों के ठहरने की व्यवस्था
गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के अतिथिगृह में की गई थी!
नेटडायरी के साथ गिरीश बिल्लौरे "मुकुल", के साथ में
शायर सगीर अशरफ, उच्चारण के सम्पादक डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
और प्रख्यात व्यंग्यकार प्रमोद ताम्बट 
गिरीश बिल्लौरे "मुकुल" जी के साथ
दायें से-साहित्यकार और कवि देवदत्त "प्रसून", ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी और जाकिर अली "रजनीश।
 हिन्दी भवन में-
डॉ.गिरिराज शरण अग्रवाल और डॉ.अशोक चक्रधर
 पुस्तकों का विमोचन करते हुए
बाँयें से-डॉ.गिरिराज शरण अग्रवाल, रवीन्द्र प्रभात, अविनाश वाचस्पति,
डॉ.रामदरश मिश्र, डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक", डॉ.अशोक चक्रधर आदि।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" को सम्मानित करते हुए 
कार्यक्र्म के मुख्यअतिथि-डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक"
(मुख्यमन्त्री-उत्तराखण्ड सरकार)
मेरे साथ कार्यक्रम का आनन्द लेते हुए
बायें से-श्रीमती आशा "शैली, देवदत्त प्रसून, सगीर अशरफ, 
मदन "विरक्त". रणधीर सिंह सुमन आदि।