सोमवार, अप्रैल 18, 2011

"मैं तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ' मयंक')

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बुधवार, अप्रैल 06, 2011

"छिपी धरोहर है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


 गीत और ग़ज़लों वाला जो सौम्य सरोवर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।

शब्द हिलोरें लेते जब भी मेरी रीती सी गागर में,
देता हूँ उनको उडेल मैं, धारा बन करके सागर में,
उच्चारण में ठहर गया जीवन्त कलेवर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।

पगडण्डी है वही पुरानी, जिसको मैंने अपनाया है,
छंदों का संसार सनातन, मेरे मन को ही भाया है,
छल-छल, कल-कल करती गंगा बहुत मनोहर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।

पर्वत मालाएँ फैली हैं, कितनी धरा-धरातल पर,
किन्तु हिमालय जैसा कोई, नज़र न आता भूतल पर,
जो अरिदल से रक्षा करता वही महीधर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।

बेच रहे ऊँचे दामों में, स्वादहीन पकवानों को,
शिक्षा की बोली लगती है, ऊँचे भव्य मकानों में,
जो देता है जीवन सबको, वही पयोधर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।

शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

"हमने भी मूर्ख बनाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आज हमने भी मूर्ख बना कर 
लोगों का जायका बिगाड़ा।
आज मूर्ख दिवस है।
सुबह से ही लोग अपने खास चहेतों को 
मूर्ख बनाने के नये-नये तरीके इस्तेमाल कर रहे थे।
मैंने भी कई वर्षों पुराना अपना तरीका आज़माया।
बाजार से सन्तरे मँगाए और सुबह-सुबह
आधा दर्जन सन्तरों में
मलेरिया की दवा कड़वी कुनैन के 
इंजक्शन लगा दिये।
आज दिन भर में लोग आते रहे।
जो अपने खास मित्र आये उनके सामने ही
सन्तरा छीला गया और स्वागत में पेश किया गया।
जिसने भी एक फाँक मुँह में रखी 
उसके मुँह का आकार देखने लायक था।
कैसा रहा यह प्रयोग!
सभी मूर्खों को
मूर्ख दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!