सोमवार, सितंबर 06, 2010

"मक्कारों की जय-जयकार!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

बहन रचना दीक्षित,  का  ५ सितम्बर २०१० ४:१४ अपराह्न   
उच्चारण पर यह कमेंट आया-
"गुरु तो वन्दनीय है ५ सितम्बर ही क्यों हर दिन ही उनकी वंदना होनी चाहिए!"
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गुरू जी का यानि शिक्षक या अध्यापक का सम्मान! ५ सितम्बर को ही क्यों? हर दिन क्यों नहीं?
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आज मैं यह देखता हूँ कि देश, काल और परिस्थतियों के कारण गुरू जी और गुरू शब्द के अर्थ  में काफी अन्तर आ गया है!
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"गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरू आपने, गोबिन्द दियो बताय।।" 
यह दोहा आज समय की आँधी में अपना अस्तित्व खोने सा लगा है।
बानगी देखिए-
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(पहला चित्र)
छात्र बहुत ही श्रद्धा भाव से शिक्षक के पास जाकर कहता है-
"गुरू जी प्रणाम!"
अध्यापक उत्तर देता है- "आयुष्मान रहो वत्स!"
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(दूसरा चित्र)
ट्रक का क्लीनर ट्रक-ड्राईवर से कहता है-
"कहो गुरू! क्या हाल हैं? (यहाँ श्रद्धाभाव में कमी आ गई।)
ट्रक-ड्राईवर उत्तर देता है-
"अबे तू…! कैसा है?"
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(तीसरा चित्र)
छोटा दादा शहर के बड़े भाई से कहता है-
"अरे गुरू! क्या हाल हैं?
भाई उत्तर देता है-
"अबे  स्सा....   तू…..!"
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देख लिया आपने !
कितने बदल गये हैं गुरू शब्द के अर्थ!
यानि पहले चित्र में गुरू माने श्रद्धा के पात्र गुरू जी!
और दूसरे व तीसरे चित्र में-
गुरू माने- "मक्कार" ।
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अब तो आपको समझ में आ ही गया होगा कि -
"5 सितम्बर को केवल गुरू जी का सम्मान होता हैं अपने देश में!"
और बाकी दिन-
"मक्कारों की जय-जयकार!"
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! आज हम जो कुछ भी हैं शिक्षक के वजह से हैं जिनसे हमनें ज्ञान प्राप्त किया ! उन्हें तो हम हमेशा याद करते हैं खासकर आज का दिन कभी नहीं भूलते !
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. शास्त्री जी रचना ने इस मे कुछ गलत नही कहा। हम रोज़ देखते हैं स्कूलों और धार्मिक स्थानों मे कितने यौन शोशण और भ्रष्टाचार के कितने प्रसंग सुनने को मिलते हैं रो कितने ही ब्लाग पर ऐसी पोस् और कवितायें आदि देखने को मिलती हैं। तो अगर रचना ने भी कह दिया तो क्या गलत हुया मगर हम हमेशा किसी को भी उसकी चर्चित व्यक्तित्व से देखने की बजाये हर बात पर गौर करें तो कई बातें उसकी सच भी होती हैं जैसे ये सच उसने बहुत सटीक शब्दो मे कहा है। धन्यवाद।

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  3. ना आपकी सोच गलत है ना रचना जी की क्योंकि उनका भी वो ही मतलब है कि आज के वक्त मे गुरु के प्रति श्रधा सिर्फ़ दिखावा भर रह गयी है क्यो नही ऐसा होता कि ये भाव हमेशा बरकरार रहें और ये तभी सम्भव है जब हम सब इसमे योगदान करे ……………आपका कहना भी जायज़ है कि अब गुरुओ के प्रति वो भाव नही रहे हैं और मक्कारो का ही बोलबाला है फिर भी चाहे मुट्ठी भर लोग ही क्यो न हो तो क्या नही हो सकता बस एक कोशिश की जरूरत है और फिर से उन संस्कारो के बीज रोपित किये जा सकते हैं।

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  4. मक्कारो का ही बोलबाला ? Very Nice Said..!

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