“सगीर अशरफ का एक मुक्तक” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उत्तर प्रदेश के नूरपुर (जनपद:बिजनौर) निवासी पोस्टमास्टर(H.S.G.-II) के पद से सेवा-निवृत्त शायर, पत्रकार व साहित्यकार "सग़ीर अशरफ़" ने अपनी बेगम “ज़मीला अशरफ़” को देख कर एक शेर ही जड़ दिया-
“ज़मीला अशरफ़” तुम्हारा यूँ दबे होठों में हँसना अच्छा लगता है, तुम्हारे साथ बातें करते रहना अच्छा लगता है। मैं देखूँ तुमको मेरी आँख में कोई उतर आये, फरेब-ए-जिन्दगी को यूँ भी सहना अच्छा लगता है।। “सगीर अशरफ”
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बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंsundar khyal.
जवाब देंहटाएंअशरफ साहब को शानदार शेर के लिये मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंदबे ओंठ से हँसना अच्छा!
जवाब देंहटाएंहँसकर बातें करना अच्छा!
बातें करके छक जाओ तो,
आँखों से ही पीना अच्छा!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
वाह!
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