बुधवार, जनवरी 06, 2010

“सगीर अशरफ का एक मुक्तक” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उत्तर प्रदेश के नूरपुर (जनपद:बिजनौर) निवासी पोस्टमास्टर(H.S.G.-II) के पद से सेवा-निवृत्त शायर, पत्रकार व साहित्यकार "सग़ीर अशरफ़" ने अपनी बेगम “ज़मीला अशरफ़” को देख कर एक शेर ही जड़ दिया-
IMG_0506“ज़मीला अशरफ़”
तुम्हारा यूँ दबे होठों में हँसना अच्छा लगता है,
तुम्हारे साथ बातें करते रहना अच्छा लगता है।
मैं देखूँ तुमको मेरी आँख में कोई उतर आये,
फरेब-ए-जिन्दगी को यूँ भी सहना अच्छा लगता है।।

IMG_0508 “सगीर अशरफ”

5 टिप्‍पणियां:

  1. अशरफ साहब को शानदार शेर के लिये मुबारकबाद

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