चीनी सन्त कन्फ्यूसियस मृत्यु-शैया पर पड़े थे। एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और एक-एक करके अपने पास आने को कहा। वह प्रत्येक शिष्य को अपना मुँह खोलकर दिखाते और पूछते-‘‘देखो मुँह में दाँत हैं?’’ प्रत्येक शिष्य देखता गया और ‘‘नही’’ में उत्तर देता गया। सन्त कन्फ्यूसियस ने पुनः सब शिष्यों को बुलाया और अपना मुँह खोलकर पुनः प्रश्न किया- ‘‘क्या मुँह में मेरी जीभ है?’’ सब शिष्यों ने एक साथ उत्तर दिया- ‘‘हाँ! जीभ तो है।’’ ![]() अब सन्त ने शिष्यों से कहा- ‘‘प्रिय शिष्यों, देखो! दाँत मुझे भगवान ने बाद में दिये थे और जिह्वा जन्म से ही मेरे साथ आई थी। आज मैं जा रहा हूँ। दाँत मुझे वर्षों पूर्व छोड़ कर चले गये और जिह्वा आज भी मेरे साथ है। ’’सन्त ने पुनः कहा- ‘‘दाँत अपनी कठोरता के कारण पहले ही चले गये और जीभ अपनी कोमलता के कारण आजीवन साथ रही। तुम लोग भी कोमल और मधुर स्वभाव को बनाये रखना। यही मेरा अन्तिम उपदेश है।’’ (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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बहुत अच्छी शिक्षा दी कन्फ्यूशियस ने’
जवाब देंहटाएंbahut hi shikshaprad sandesh.
जवाब देंहटाएंbahutsahi shiksha,sunder kahani
जवाब देंहटाएंAATMSAAT KAR LENE YOGYA SOOTRA
जवाब देंहटाएंBADHAAI !