गुरुवार, जून 18, 2009

‘‘विवाह-सम्बन्ध में जल्दबाजी अच्छी नही होती’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


मैं प्रजापति समाज से हूँ। मेरे छोटे पुत्र ने एम.कॉम.,बी.एड. किया हुआ है। मैं उसके लिए पुत्रवधु के रूप में एक कन्या की तलाश में था।

पिछले कुछ माह पूर्व एक सज्जन अपने मौसेरे भाई को साथ लेकर मेरे यहाँ पधारे। वो टेलीफोन विभाग में इंजीनियर के पद पर आसीन थे। गुजरात में कार्यरत थे। लेकिन रहने वाले बरेली के पास के किसी गाँव के थे।

उनकी पुत्री ने भी एम.एससी., बी.एड. किया हुआ था। वो हमारे घरेलू वातावरण को देखकर बड़े प्रभावित हुए।

अन्ततःलड़की दिखाने की तारीख तय हो गयी। हम लोग परिवार सहित लड़की देखने के लिए बरेली पहुँचे। अच्छे वातावरण में बातें हुईं।

इंजीनियर साहब और उनके सगे-सम्बन्धी हम लोगों से राय माँगने लगे और साथ ही अनुनय-विनय भी करने लगे कि साहब गरीब को भी निभा लीजिए।

मैंने अपने पुत्र से बात की तो उसने भी सहमति प्रकट की। परन्तु हमारी श्रीमती जी ने कहा कि इनकी बिटिया से भी तो सहमति लेनी चाहिए।

अतः उनके परिवार की मौजूदगी में मेरा पुत्र और श्रीमती जी लड़की से बात करने चले गये।

मेरे पुत्र ने लड़की से कहा- ‘‘क्या मैं आपको पसन्द हूँ? आपके पिता जी मुझसे मेरी राय पूछ रहे हैं।’’

लड़की ने उत्तर दिया- ‘‘इतनी जल्दी क्या है? मुझे भी सोचने का समय दो और आप भी सोचने का वक्त लो।’’

लड़की के पिता ने फिर हम लोगों से पूछा तो हमने सारी बातचीत उन्हें बताई।

उन्होंने बेटी से इस विषय में बात की, लेकिन उसने हामी नही भरी।

अतः विवाह सम्बन्ध करने में जल्दबाजी से काम नही लेना चाहिए। आज जमाना बहुत बदल गया है। खूब सोच-विचार कर ही विवाह सम्बन्ध तय करने चाहिए।

अगर हम लोग हाँ कह देते तो पुत्र और पुत्रवधु दोनो का जीवन नर्क बन जाता।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही बतला रहे हैं आप
    अच्‍छा हो यदि चेत जाए सारा समाज

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  2. सही बात है विवाह जैसा संबध दोनो की सहमति के बिना नही बन सकता।कदम उठाने से पहले बहुत सचेत रहने की जरूरत होती है।आप ने सही फैसला लिआ।

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  3. bilkul sahi........aaj jitna hak ladke se puchne ka banta hai utna hi ladki ki ichchaon ko bhi janne ka.
    ek jagruk soch.

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