मंगलवार, मई 19, 2009

‘‘चन्दा और सूरज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

चन्दा में चाहे कितने ही, धब्बे काले-काले हों।

सूरज में चाहे कितने ही, सुख के भरे उजाले हों।

लेकिन वो चन्दा जैसी शीतलता नही दे पायेगा।

अन्तर के अनुभावों में, कोमलता नही दे पायेगा।।

सूरज में है तपन, चाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।

प्रेम-प्रीत के सम्वादों की, गुंजन वन्दन जैसी है।।

सूरज छा जाने पर पक्षी, नीड़ छोड़ उड़ जाते हैं।

चन्दा के आने पर, फिर अपने घर वापिस आते हैं।।

सूरज सिर्फ काम देता है, चन्दा देता है विश्राम।

तन और मन को निशा-काल में, मिलता है पूरा आराम।।

20 टिप्‍पणियां:

  1. इन गर्मियों में तो ऐसा ही है...सूरज निकलते ही पक्षी तो क्या सभी अन्दर दुबक जाते है ,जो चाँद निकलने पर ही रहत महसूस करते है..

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  2. जिसका काम उसी को साजे,
    और करे तो डंडा बाजे!
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    नए ब्लॉग पर नई रचना का स्वागत है!
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    बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
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  3. बधाई एक और ब्लौग की सौगात हमें मिली.

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  4. वाह.......सूरज और चाँद में कोमल भेद बताती सुन्दर रचन है ...........अनोखा अंदाज पसंद आया
    अच्छी रचना है

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  5. bahut achhi kavita k liye bahut achhi badhai sweekar karen

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  6. शास्त्री जी ।
    ब्लॉग बहुत खूबसूरत है।
    मुबारकवाद।

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  7. मयंक जी।
    आपकी क्रियाशीलता देख कर
    मुझे भी प्रेरणा मिलती है।
    नए ब्लॉग का स्वागत है!

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  8. शास्त्री जी।
    नए ब्लॉग का हार्दिक स्वागत है!

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  9. मयंक जी।
    ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है

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  10. नई प्रविष्टी के साथ,
    ब्लॉग की दुनिया में
    आपका स्वागत है।

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  11. HINDI BLOGING MEN NEW POST KE SATH AAPKA SWAGAT HAI.
    ASHVHAYA HAI KI 4-4 BLOGS KO AAP MANAGE KARRAHE HAIN.

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  12. आपके द्वारा बनाया गया ब्लॉग,
    सुन्दर और आकर्षक है।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  13. sooraj aur chand ke swabhav ka antar vyakt karti kavita.
    bahut badhiya hai.

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