--कणिकाएँ-- -१- नेट के सम्बन्ध एक क्लिक में शुरू एक क्लिक में बन्द |
-२- टूटी पतवार बीच मझधार कैसे जाएँ पार |
-३- तिनकों का घर खुला दर बाज़ की नजर |
-४- जीवन संसार चलना लगातार जैसे नदिया की धार |
-५- सहता है धूप, साधू का रूप सभी को भाया |
--कणिकाएँ-- -१- नेट के सम्बन्ध एक क्लिक में शुरू एक क्लिक में बन्द |
-२- टूटी पतवार बीच मझधार कैसे जाएँ पार |
-३- तिनकों का घर खुला दर बाज़ की नजर |
-४- जीवन संसार चलना लगातार जैसे नदिया की धार |
-५- सहता है धूप, साधू का रूप सभी को भाया |
नैनीताल जनपद तथा आस-पास के क्षेत्र
के सात्यिकारों को अखबारों से जब यह पता लगा कि बाबा नागार्जुन खटीमा आये हुए
हैं तो मेरे तथा वाचस्पति जी के पास उनके फोन आने लगे।
हम लोगों ने भी सोचा कि बाबा के
सम्मान में एक कवि-गोष्ठी ही कर ली जाये।
(चित्र में-सनातन धर्मशाला, खटीमा में 9 जुलाई,1989 को सम्पन्न
कवि गोष्ठी के चित्र में-गम्भीर सिंह पालनी, जवाहरलाल वर्मा,
दिनेश भट्ट, बल्लीसिंह चीमा, वाचस्पति, कविता पाठ करते हुए
ठा.गिरिराज सिंह, बाबा नागार्जुन तथा ‘डा. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)
अतः 9 जलाई 1989
की तारीख, समय दिन में 2 बजे का और स्थान सनातन धर्मशाला का
सभागार निश्चित कर लिया गया।
उन दिनों ठा. गिरिराज सिंह नैनीताल जिला को-आपरेटिव बैंक के महाप्रबन्धक थे। वो एक बड़े
साहित्यकार माने जाते थे। जब उनको इस गोष्ठी की सूचना अखबारों के माध्यम से मिली
तो वह भी बाबा से मिलने के लिए पहुँच गये।
सनातन धर्मशाला , खटीमा
में गोष्ठी शुरू हो गयी। जिसकी अध्यक्षता ठा. गिरिराज सिंह ने की। बाबा को मुख्य
अतिथि बनाया गया। इस अवसर पर कथाकार गम्भीर सिंह पालनी, गजल
नवोदित हस्ताक्षर बल्ली सिंह चीमा, जवाहर लाल वर्मा, दिनेश
भट्ट,देवदत्त प्रसून, हास्य-व्यंग
के कवि गेंदालाल शर्मा निर्जन, टीका राम पाण्डेय एकाकी,रामसनेही
भारद्वाज स्नेही, डा. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, भारत
ग्राम समाचार के सम्पादक मदन विरक्त, केशव भार्गव निर्दोष आदि ने अपनी रचनाओं का
पाठ किया। गोष्ठी का संचालन राजकीय महाविद्यालय, खटीमा के हिन्दी के
प्राध्यापकवाचस्पति ने किया।
इस अवसर पर साहित्य शारदा मंच, खटीमा
का अध्यक्ष होने के नाते मैंने बाबा को शॉल ओढ़ा कर साहित्य-स्नेही की मानद
उपाधि से अलंकृत भी किया था।
उन दिनों मैं हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
की स्थायी समिति का सदस्य था। सम्मेलन के प्रधानमन्त्री श्री श्रीधर शास्त्री से
मेरी घनिष्ठता अधिक थी। मैंने उन्हें भी बाबा नागार्जुन के खटीमा में होने की
सूचना दे दी थी।
उनका उत्तर आया कि बाबा को 14 सितम्बर,
हिन्दी दिवस के अवसर पर प्रयाग ले
आओ। सम्मेलन की ओर से उन्हें सम्मानित कर देंगे।
मैंने बाबा के सामने श्रीधर शास्त्री
जी का प्रस्ताव रख दिया। बाबा ने अनसुना कर दिया। मैंने बाबा को फिर याद दिलाया।
अब तो बाबा का रूप देखने वाला था।
वह बोले-‘‘श्रीधर
जी से कह देना कि मैं उनका वेतन भोगी दास नही हूँ। उन्हें ससम्मान मुझे स्वयं ही
आमन्त्रित करना चाहिए था।’’
मैंने बाबा को बहुत समझाया परन्तु
बाबा ने एक बार जो कह दिया वह तो अटल था।
इतने स्वाभिमानी थे बाबा।
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मर्मस्पर्शी हाइकुओं
का संकलन है
“शब्दों के पुल”
अभी एक सप्ताह पूर्व डॉ. सारिका मुकेश
द्वारा रचित एक हाइकु संग्रह मिला, जिसका नाम था “शब्दों के पुल”। 83 रचनाओं से सुसज्जित 112 पृष्ठों
की इस पुस्तक को जाह्नवी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका
मूल्य रु.200/- रखा गया है।
जनसाधारण की सोच से परे इसका आवरण चित्र reative Art ने तैयार किया है।
कवयित्री ने अपनी बात में लिखा है-
“हाइकु स्वयं में
एक कविता है। इसमें कहे से अधिक अनकहा होता है, जिसके अर्थ पाठक अपनी पैनी
दृष्टि और सूझ-बूझ से खोजकर तराशता है। हाइकु मूलतः प्रकृति से जुड़े रहे हैं
परन्तु मनुष्य बी इसी प्रकृति का हिस्सा है और वैसे भी साहित्य समाज का दर्पण है
और समाज व्यक्ति/मनुष्य से बनता है,
सो मनुष्य की अनदेखी करना कदापि उचित नहीं होगा। इसलिए मनुष्य को केन्द्र में रखकर
खूब हाइकु लिखे जा रहे हैं।“
“जीवन जैसे
दूब की नोक पर
ओस की बूँद”
--
“क्यों भूले सत्य
भूल गये ईश्वर
अहंकार में”
कवयित्री ने अपने
हाइकु संग्रह “शब्दों के पुल” का श्रीगणेश वन्दे चरण से किया है-
“वन्दे चरण
तुझको समर्पण
श्रद्धा सुमन”
--
“ओ मेरे कान्हा
रँग दे चुनरिया
अपने रँग”
--
उम्र तमाम
बसो मेरे मन में
ओ घनश्याम”
महाभारत के परिपेक्ष्य में कवयित्री ने नारी
की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कुछ इस प्रकार से हाइकुओं में बाँधा है-
“महाभारत
अन्याय के खिलाफ
बिछी बिसात”
--
पाँच पाण्डव
औ’ अकेली द्रोपदी
करती तृप्त”
--
स्त्री की नियति
कभी अंकशायिनी
तो कभी जूती”
प्रकृतिचित्रण में भी डॉ.सारिका मुकेश
की कलम अछूती नहीं रही है। संध्याकाल को उन्होंने अपने हाइकुओं में शब्द देते हुए लिखा है-
“दिन में थक
समुद्र की गोद में
छिपता सूर्य”
--
“लौटते पंछी
अपने घोंसले में
बच्चों के पास”
--
“हसीन शाम
उतरी धरा पर
छलके जाम”
आयु की शाश्वत परिभाषा कवयित्री ने “उम्र
और हम” शीर्षक से कुछ इस प्रकार दी है-
“उम्र की गाड़ी
दौड़ती प्रतिपल
मृत्यु की ओर”
--
“उम्र बढ़ती
घटती प्रतिपल
यह जिन्दगी”
--
“जन्मदिन क्यों?
होता एक बरस
आयु का कम”
डॉ.सारिका मुकेश ने अपने हाइकु संग्रह
“शब्दों के पुल” में रोजमर्रा की चर्या में पाये जाने
वाले आशा-प्रत्याशा, सोचता मन, मित्र, पंछी,आकांक्षा, सूरज, पानी पर लकीरें,
आदमी, आँसू, अज्ञानता, विसंगति, तूफान, परिवर्तन, बेवफाई, विदा, रामायण,
राजनीति, जीवनसंध्या, नारी आदि विविध विषयों पर अपनी सहज बात कही है।
अन्त में इतना ही कहूँगा कि डॉ. सारिका
मुकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और उनकी हाइकुकृति “शब्दों के पुल” एक पठनीय ही नहीं अपितु संग्रहणीय
काव्य पुस्तिका है।
मेरा
विश्वास है कि “शब्दों के पुल” हाइकुसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों के दिल को छूने में सक्षम
है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि यह हाइकु संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगा।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262
308
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-07417619828
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आओ अभिनन्दन करें, नये साल का आज।
श्रमिक-किसान-जवान
से, जीवित देश समाज।१।
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गुलदस्ते में सजे
हैं, सुन्दर-सुन्दर फूल।
सुमनों सा जीवन
जियें, बैर-भाव को भूल।२।
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शस्य-श्यामला धरा
है, जीवन का आधार।
आओ पौधों से करें, धरती का शृंगार।३।
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जनमानस पर कर रहे, कोटि-कोटि अहसान।
सबका भरते पेट हैं, ये श्रमवीर
किसान।४।
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मातृभूमि के वास्ते, देते जो बलिदान।
रक्षा में संलग्न
हैं, अपने वीर जवान।५।
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