"मुखर होता मौन" ग़ज़ल संग्रह
मेरी नज़र से
"वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।।"
आमतौर पर देखने में आया
है कि जो महिलाएँ लेखन कर रही हैं उनमें से ज्यादातर चौके-चूल्हे और रसोई की
बातों को ही अपने ब्लॉगपर लगाती हैं। किन्तु
इन सबसे हटकर श्रीमती रेखा लोढ़ा ‘स्मित’
ने इस मिथक को झुठलाते हुए, अपनी दैनिकचर्या में से कीमती समय
निकाल कर उम्दा साहित्य स्रजन किया है।
कुछ समय पूर्व मुझे डाक
द्वारा इनका ग़ज़ल संग्रह “मुखर होता मौन” प्राप्त हुआ। पुस्तक के नाम और आवरण ने मुझे
प्रभावित किया और मैं इसको पढ़ने के लिए स्वयं को रोक न सका। जबकि इससे पूर्व
में प्राप्त हुई कई मित्रों की कृतियाँ मेरे पास समीक्षा के लिए कतार में हैं।
रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ ने अपने ग़ज़ल संग्रह “मुखर होता मौन” में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल एक
कवयित्री है बल्कि शब्दों की कुशल चितेरी भी हैं।
इन्होंने अपने आत्मकथ्य में लिखा है-
“मेरे घर-परिवार में दूर-दूर तक
कोई लेखक या कवि नहीं हुआ। हाँ, साहित्य प्रेमी, रसिक-पाठक अवश्य मिल जायेंगे।
फिर पता नहीं कहाँ से ये अंकुर मुझमें फूटा। माँ शारदा की विशेष कृपादृष्टि ही
थी मुझ अकिंचन पर।...”
कवयित्री ने अपनी पहली ग़ज़ल में “मुखर होता मौन” की शीर्षक रचना को स्थान दिया है-
"मिटे आज मन से मिरे फासले हैं
मुझे मौन अपने बहुत सालते हैं
कही-अनकही भी रही फाँस बनकर
मुखर मौन फिर आज होने लगे हैं"
कवयित्री ने अपने काव्यसंग्रह की
मंजुलमाला में एक सौ चवालीस पृष्ठ के इस संग्रह में 134 उम्दा ग़जलों के मोतियों
को पिरोया है जिनमें जन-जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं
की संवेदनाओं पर तो अपनी अपनी ग़ज़ले
प्रस्तुत की हैं साथ ही नदी, समन्दर, बादल, चाँद-सितारे, आँसू,
पीड़ा, माँ दोस्ती, छल-फरेब आदि लौकिक और अलौकिक उपादानों को भी अपनी ग़ज़लों का विषय बनाया है।
इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
“सितारों में दुनिया बसाई हुई
जमीनी हकीकत भुलाई हुई
पता है नहीं कल रहें या नहीं
बरस सौ की दौलत जमाई हुई
...
अदावत करें या बगावत करें
सिला प्यार का बेवफाई हुई”
“मुखर होता मौन” ग़ज़ल संग्रह में कवयित्री ने लो उतरने लगीं झूठ की तख्तियाँ में अपनी अपनी व्यथा को कुछ इस प्रकार अपने
शब्द दिये हैं-
“हार कर हैसलो से चली आँधियाँ
लो उतरने लगीं झूठ की तख्तियाँ
यूँ न
निकलो सनम सज-सँवर कर कहीं
गिर न
जाये कहीं हम पे ये बिजलियाँ“
अतुकान्त रचनाओं की अपेक्षा छन्दबद्ध लिखना बहुत कठिन होता है।
लेकिन जहाँ तक मुझे ज्ञात है कवयित्री ने अपनी सभी रचनाएँ छन्दबद्ध ही लिखीं
हैं, वो चाहे दोहे हों, गीत हो या ग़जलें हो। देखिए उनकी इस ग़ज़ल की बानगी-
“लोग वो जो वफा नहीं करते
प्यार उनके फला नहीं करते
राह में सत्य की चले जो भी
खार से वो रुका नहीं करते
...
हार जिन पर सदा रहा माँ का
मुस्किलों से डरा नहीं करते”
समाज में व्याप्त हो रहे
आडम्बरों पर भी करीने के साथ चोट करने में कवयित्री ने कोई कोताही नहीं की है-
“अभी तीर हमने चलाया कहाँ है
अभी सच से परदा उठाया कहाँ है
जलाते रहे है फ़कत पुतले ही हम
कि रावण बताओ मिटाया कहाँ है”
जन्मदात्री माता के प्रति
कवयित्री ने अपनी वचनबद्धता व्यक्त करते हुए लिखा है-
“भले नाराज़ हो पर वो अजीयत दे
नहीं सकती
हमें तो माँ किसी भी हाल नफरत दे नहीं सकती”
ग़ज़लों का काव्यसौष्ठव
का बड़ा ही नाज़ुक होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने कुशलता के साथ किया है-
“रात-दिन ये दिल जला क्या फायदा
राज़ तुमसे ही रहा क्या पायदा
सात जब देना नहीं था दूर तक
कुछ कदम चलकर हुआ क्या फायदा”
ग़ज़ल की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि इसके
हरेक अशआर में वार्तालाप यानी बातचीत होती है। अगर बातचीत का यह सिलसिला नहीं
है तो ग़ज़ल बेमानी होजाती है। इस बात का कवयित्री ने अपनी प्रत्येक ग़ज़ल में
ध्यान रखा है।
“महफिलें यूँ ही सजाया कीजिए
बज़्म से मेरी न जाया कीजिए
याद काफी है सताने को हमें
अब न हमको यूँ सताया कीजिए”
“मुखर होता मौन” काव्यसंकलन को पढ़कर मैंने अनुभव
किया है कि कवयित्री रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त कविता और शृंगार की सभी विशेषताओं का
संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक “मुखर होता मौन” काव्यसंकलन को पढ़कर अवश्य लाभान्वित
होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
“मुखर होता मौन” ग़ज़ल संग्रह को आप कवयित्री के पते
सी-207, आलोक स्कूल रोड, सुभाष नगर
भीलवाड़ा (राजस्थान) 311001
दूरभाष– 01482-265044 तथा
मोबाइल नम्बर- 09829610939
बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा
पेपरबैक में छपी 144 पृष्ठों की पुस्तक का
मूल्य मात्र रु. 125/- है।
दिनांकः 11-07-2016
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
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