हुआ
यों कि मैं 3बजे घर के नीचे बने अपने ऑफिस से ऊपर घर
में चाय पीने आया था। मोबाइल
टेबिल पर ही छूट गया था। ऐसा
अक्सर कभी-कभी हो जाता था।
लेकिन
जब मैं 3-20 पर
ऑफिस आया तो मोबाइल वहाँ नहीं था। कॉल
करके देखा तो मोबाइल स्विचऑफ आ रहा था।
अब तो
यह चिन्ता का विषय था। 27000 रुपये की चपत लगी, कोई
बात नहीं। लेकिन सबसे बड़ी चिन्ता इस बात की थी कि चोर ने
घर देख लिया था।
फिर घटना सूत्र मिलाये जाने लगे, मगर कुछ समझ में नहीं आया। तभी
मेरी नजर टेबिल पर पड़ी पत्रिकाओं की स्पीड पोस्ट पर पड़ी। लेकिन
मैंने तो स्पीड पोस्ट रिसीव की ही नहीं थी। फिर
किसने मेरे हस्ताक्षर करके यह पोस्ट-पार्सल लिया होगा?
शाम को
5 बजे
मैं पोस्टऑफिस गया और पोस्टमास्टर से पूछा कि किसने
मेरे स्पीडपोस्ट पार्सल पर हस्ताक्षर किये होंगे।
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उस समय पोस्टऑफिस में सारे पोस्टमैन मौजूद थे मगर हमारे क्षेत्र का पोस्टमैन
वहाँ नहीं था। पोस्टमास्टर
ने उसे मोबाइल करके बुलाया तो पता लगा कि उसने
खुद ही मेरी डिलीवरी पर हस्ताक्षर किये थे।
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मैंने
पुलिस रिपोर्ट करने की बात की तो वह बार-बार मेरे
पाँव छूकर माफी माँगने लगा और कहने लगा कि उसने
मोबाइल
नहीं चुराया है।
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मेरे
जाने के बाद पोस्टमास्टर ने उसे विषय की गम्भीरता गम्भीरता समझाई होगी इसलिए वह अपने एक साथी पोस्टमैन को लेकर मेरे घर आया। लेकिन तब भी वह माफी ही माँगता रहा। और चोरी नहीं
कुबूली। जब मैं नामजद पुलिस रिपोर्ट की बात पर अड़ गया तो वह इस बात पर तैयार हो गया कि वह उसी कंडीशन का मोबाइल मुझे कल दोपहर 12 बजे
तक लाकर दे देगा।
देखते हैं कल क्या होता है?...
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