शनिवार, अक्टूबर 04, 2014
"कुछ कणिकाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--कणिकाएँ--
-१-
नेट के सम्बन्ध
एक क्लिक में शुरू
एक क्लिक में बन्द
-२-
टूटी पतवार
बीच मझधार
कैसे जाएँ पार
-३-
तिनकों का घर
खुला दर
बाज़ की नजर
-४-
जीवन संसार
चलना लगातार
जैसे नदिया की धार
-५-
सहता है धूप,
साधू का रूप
सभी को भाया
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