गुरुवार, जून 12, 2014

"लोक उक्ति में कविता की भूमिका" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

लोक उक्ति में कविता की भूमिका 

Slide1.JPG दिखाया जा रहा है      कविता रावत ने कॉमर्स विषय से एम.कॉम. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। वे घर-दफ्तर की जिम्मेदारी के साथ वर्ष 2009 से निरन्तर अपने ब्लॉग  www.kavitarawatbpl-blogspot-in  पर कविताकहानी अथवा संस्मरण आदि के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों को व्यक्त कर देश-दुनिया से जुड़ने के लिए प्रयासरत रहती है। इनका मानना है कि ब्लॉग इसके लिए घर से बाहर एक घर  है। जिस प्रकार पेड़ अपने आकर्षण शक्ति से बादलों को खींचकर बरसने के लिए विवश कर देते है, उसी प्रकार ये भी जब अपने आस-पास या समाज में कुछ ऐसा घटित होता देखती है, जिसे देखकर उनका मन संवेदनशील हो उठता है तो वही उनको लिखने के लिए प्रेरित करता है।  सामाजिक परिवेश की घटनाओंपरिदृश्यों और मानव मन में उठने वाली सहज भावनाओं व विचारों को सरल शब्दावली में व्यक्त करना इनकी भाषा-शैली का एक प्रमुख अंग है।         कविता रावत के काव्य संग्रह "लोक उक्ति में कविता" से  उनके लेखन से आशाएँ उभरती हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा है-
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नही घटता
अंदर ही अंदर कुछ रहा है रिसता
किसे फुरसत कि देखे फुरसत से जरा
कहाँ उथला कहाँ राज है बहुत गहरा
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता...
      लोकोक्तियों के माध्यम से कविताओं में अपनी लेखनी का जादू इन्होंने बहुत कुशलता से बिखेरा है।
“साँप को चाहे जितना दूध पिलाओ वह कभी मित्र नहीं बनेगा
आग में गिरे बिच्छू को उठा लो तो वह डंक ही मारेगा
गड्ढे में गिरे हुए पागल कुत्ते को बाहर निकालो तो वह काट लेगा
भेडि़ये को चाहे जितना खिलाओ-पिलाओ वह जंगल ही भागेगा...
          एक अन्य रचना में कवयित्री तार्किक भावों को जीवन्त रखते हुए लिखती है-
“गौरैया कितनी भी ऊँची क्यों न उड़े गरुड़ तो नहीं बन जाएगी
बिल्ली कितनी भी क्यों न उछले बाघ तो नहीं बन जाएगी
घोड़े में जितनी ताकत हो वह उतना ही बोझ उठा पायेगा
जिसे आदत पड़ गई लदने की वह जमीं पर क्या चलेगा
जो अंडा नहीं उठा सकता वह भला डंडा क्या उठाएगा...”
    समय शीर्षक से रचित रचना में कवयित्री कहती हैं-
“पंख होते हैं समय के
पंख लगाकर उड़ जाता है
पर छाया पीछे छोड़ जाता है
भरोसा नहीं समय का
न कुछ बोलता न दुआ सलाम करता है
सबको अपने आगे झुकाकर
चमत्कार दिखाता है
बड़ा सयाना है समय
हर गुत्थी यही सुलझाता है....”
    बुरी आदत शीर्षक से प्रस्तुत रचना तो उनकी कालजयी रचना है-
“गधा कभी घोड़ा नहीं बन सकता, चाहे उसके कान कतर दो।
नीम-करेला कडुवा ही रहेगा, चाहे शक्कर की चासनी में डाल दो।।
हाथी को कितना भी नहला दो, वह अपने तन पर कीचड़ मल देगा।
भेडि़ये के दांत भले ही टूट जाय, वह अपनी आदत नहीं छोड़ेगा।।
पानी चाहे जितना भी उबल जाय,  उसमें चिंगारी नहीं उठती है।
एक बार बुरी लत लग जाय, तो वह आसानी से नहीं छूटती है।।...”
    इसके अतिरिक्त संगति का प्रभाव, दुर्जनता का भाव,हाय,पैसा! हाय पैसा!, दिल को दिल से राह होती है, मित्र और मित्रता, दूर-पास का लगाव-अलगाव, अपने - पराये का भेद, अति से सब जगह बचना चाहिए, भोजन मीठा नहीं- भूख मीठी होती है,दाढ़ी बढ़ा लेने पर सभी साधु नहीं बन जाते हैं, दो घरों का मेहमान भूखा मरता है आदि विषयों पर अपनी लेखनी चलाना कविता रावत के ही के ही बस की बात है।    लोक उक्ति में कविता की पाण्डुलिपि को आद्योपान्त पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि यह पुस्तक विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं  के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। विदूषी कवयित्री ने अपनी रचना का विषय चाहे जो भी चुना हो,मगर उसमें एक सन्देश अवश्य निहित होता है, जिसमें लौकिक व्यवहार भी निहित होता है। एक ऐसी कृति है जिसमें प्राकृतिक परिवेश के साथ-साथ साहित्य की उद्देश्यपरक सम्भावनाएँ प्रकट होती हैं।  उदाहरण के लिए अति से सब जगह बचना चाहिए रचना को ही लीजिए-
“प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।...”
     कविता रावत जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया हैवह अत्यन्त सराहनीय है।    मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक कविता रावत जी के साहित्य से अवश्य लाभान्वित होंगे और उनकी यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।21 जनवरी, 2014
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
हिन्दी ब्लॉगर, कवि तथा साहित्यकार
खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड)
फोन/फैक्स- (05943) 250129
मोबाइल-07417619828

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप की पारखी नजर भी कमाल है । साधुवाद ।

    जवाब देंहटाएं

  2. सशक्त हस्ताक्षर रावत कविता जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर सशक्त समालोचना प्रस्तुत की है शास्त्री जी ने।

    “पंख होते हैं समय के
    पंख लगाकर उड़ जाता है
    पर छाया पीछे छोड़ जाता है
    भरोसा नहीं समय का

    जवाब देंहटाएं
  3. पुस्तक की यथोचित समीक्षा के लिए आभारी हूँ..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. http://kavitakosh.org/kk/otherapps/ebooks/?b=1QYp4X0XecFU_0EDBdIWAg9QrS_Gm9jl_

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।