मंगलवार, जून 24, 2014

"आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों।
फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं। 
उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए। 
मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रयास भी किया। मगर सफल नहीं हो पाया। शायद कुछ तकनीकी खामी थी।
श्री केवलराम जी ने फिर मुझे याद दिलाया तो मैंने अपनी दिक्कत बता दी।
इन्होंने मुझसे मेरा ईमल और उसका पासवर्ड माँगा तो मैंने वो भी दे दिया।
इन्होंने प्रयास करके उस तकनीकी खामी को ठीक किया और मुझे बता दिया कि ब्लॉगसेतु के आपके खाते का पासवर्ड......है।
मैंने चर्चा मंच सहित अपने 5 ब्लॉगों को ब्लॉग सेतु से जोड़ दिया।
ब्लॉगसेतु से अपने 5 ब्लॉग जोड़े हुए मुझे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि इन महोदय ने कहा कि आप ब्लॉग मंच को ब्लॉग सेतु से हटा लीजिए।
मैंने तत्काल अपने पाँचों ब्लॉग ब्लॉगसेतु से हटा लिए।
अतः बात खत्म हो जानी चाहिए थी। 
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कुछ दिनों बाद मुझे मेल आयी कि ब्लॉग सेतु में ब्लॉग जोड़िए।
मैंने मेल का उत्तर दिया कि इसके संचालक भेद-भाव रखते हैं इसलिए मैं अपने ब्लॉग ब्लॉग सेतु में जोड़ना नहीं चाहता हूँ।
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बस फिर क्या था श्री केवलराम जी फेसबुक की चैटिंग में शुरू हो गये।
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यदि मुझसे कोई शिकायत थी तो मुझे बाकायदा मेल से सूचना दी जानी चाहिए थी । लेकिन ऐसा न करके इन्होंने फेसबुक चैटिंग में मुझे अप्रत्यक्षरूप से धमकी भी दी।
एक बानगी देखिए इनकी चैटिंग की....
"Kewal Ram
आदरणीय शास्त्री जी
जैसे कि आपसे संवाद हुआ था और आपने यह कहा था कि आप मेल के माध्यम से उत्तर दे देंगे लेकिन आपने अभी तक कोई मेल नहीं किया
जिस तरह से बिना बजह आपने बात को सार्जनिक करने का प्रयास किया है उसका मुझे बहुत खेद है
ब्लॉग सेतु टीम की तरफ से फिर आपको एक बार याद दिला रहा हूँ
कि आप अपनी बात का स्पष्टीकरण साफ़ शब्दों में देने की कृपा करें
कोई गलत फहमी या कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए
क्योँकि गलत फहमी का कोई सवाल नहीं है
सब कुछ on record है
इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपन द्वारा की गयी टिप्पणी के विषय में कल तक स्पष्टीकरण देने की कृपा करें 24/06/2014
7 : 00 AM तक
अन्यथा हमें किसी और विकल्प के लिए बाध्य होना पडेगा
जिसका मुझे भी खेद रहेगा
अपने **"
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ब्लॉग सेतु के संचालकों में से एक श्री केवलराम जी ने मुझे कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देकर इतना बाध्य कर दिया कि मैं ब्लॉगसेतु के संचालकों से माफी माँगूँ। 
जिससे मुझे गहरा मानसिक आघात पहुँचा है।
इसलिए मैं ब्लॉगसेतु से क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही ब्लॉगिंग भी छोड़ रहा हूँ। क्योंकि ब्लॉग सेतु की यही इच्छा है कि जो ब्लॉगर प्रतिदिन अपना कीमती समय लगाकर हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध कर रहा है वो आगे कभी ब्लॉगिंग न करे।
मैंने जीवन में पहला एग्रीगेटर देखा जिसका एक संचालक बचकानी हरकत करता है और फेसबुक पर पहल करके चैटिंग में मुझे हमेशा परेशान करता है।
उसका नाम है श्री केवलराम, हिन्दी ब्लॉगिंग में पी.एचडी.।
इस मानसिक आघात से यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ब्लॉगसेतु और इससे जुड़े श्री केवलराम की होगी।
आज से ब्लॉगिंग बन्द।
और इसका श्रेय ब्लॉगसेतु को।
जिसने मुझे अपना कीमती समय और इंटरनेट पर होने वाले भारी भरकम बिल से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की।
धन्यवाद।

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"

गुरुवार, जून 12, 2014

"लोक उक्ति में कविता की भूमिका" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

लोक उक्ति में कविता की भूमिका 

Slide1.JPG दिखाया जा रहा है      कविता रावत ने कॉमर्स विषय से एम.कॉम. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। वे घर-दफ्तर की जिम्मेदारी के साथ वर्ष 2009 से निरन्तर अपने ब्लॉग  www.kavitarawatbpl-blogspot-in  पर कविताकहानी अथवा संस्मरण आदि के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों को व्यक्त कर देश-दुनिया से जुड़ने के लिए प्रयासरत रहती है। इनका मानना है कि ब्लॉग इसके लिए घर से बाहर एक घर  है। जिस प्रकार पेड़ अपने आकर्षण शक्ति से बादलों को खींचकर बरसने के लिए विवश कर देते है, उसी प्रकार ये भी जब अपने आस-पास या समाज में कुछ ऐसा घटित होता देखती है, जिसे देखकर उनका मन संवेदनशील हो उठता है तो वही उनको लिखने के लिए प्रेरित करता है।  सामाजिक परिवेश की घटनाओंपरिदृश्यों और मानव मन में उठने वाली सहज भावनाओं व विचारों को सरल शब्दावली में व्यक्त करना इनकी भाषा-शैली का एक प्रमुख अंग है।         कविता रावत के काव्य संग्रह "लोक उक्ति में कविता" से  उनके लेखन से आशाएँ उभरती हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा है-
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नही घटता
अंदर ही अंदर कुछ रहा है रिसता
किसे फुरसत कि देखे फुरसत से जरा
कहाँ उथला कहाँ राज है बहुत गहरा
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता...
      लोकोक्तियों के माध्यम से कविताओं में अपनी लेखनी का जादू इन्होंने बहुत कुशलता से बिखेरा है।
“साँप को चाहे जितना दूध पिलाओ वह कभी मित्र नहीं बनेगा
आग में गिरे बिच्छू को उठा लो तो वह डंक ही मारेगा
गड्ढे में गिरे हुए पागल कुत्ते को बाहर निकालो तो वह काट लेगा
भेडि़ये को चाहे जितना खिलाओ-पिलाओ वह जंगल ही भागेगा...
          एक अन्य रचना में कवयित्री तार्किक भावों को जीवन्त रखते हुए लिखती है-
“गौरैया कितनी भी ऊँची क्यों न उड़े गरुड़ तो नहीं बन जाएगी
बिल्ली कितनी भी क्यों न उछले बाघ तो नहीं बन जाएगी
घोड़े में जितनी ताकत हो वह उतना ही बोझ उठा पायेगा
जिसे आदत पड़ गई लदने की वह जमीं पर क्या चलेगा
जो अंडा नहीं उठा सकता वह भला डंडा क्या उठाएगा...”
    समय शीर्षक से रचित रचना में कवयित्री कहती हैं-
“पंख होते हैं समय के
पंख लगाकर उड़ जाता है
पर छाया पीछे छोड़ जाता है
भरोसा नहीं समय का
न कुछ बोलता न दुआ सलाम करता है
सबको अपने आगे झुकाकर
चमत्कार दिखाता है
बड़ा सयाना है समय
हर गुत्थी यही सुलझाता है....”
    बुरी आदत शीर्षक से प्रस्तुत रचना तो उनकी कालजयी रचना है-
“गधा कभी घोड़ा नहीं बन सकता, चाहे उसके कान कतर दो।
नीम-करेला कडुवा ही रहेगा, चाहे शक्कर की चासनी में डाल दो।।
हाथी को कितना भी नहला दो, वह अपने तन पर कीचड़ मल देगा।
भेडि़ये के दांत भले ही टूट जाय, वह अपनी आदत नहीं छोड़ेगा।।
पानी चाहे जितना भी उबल जाय,  उसमें चिंगारी नहीं उठती है।
एक बार बुरी लत लग जाय, तो वह आसानी से नहीं छूटती है।।...”
    इसके अतिरिक्त संगति का प्रभाव, दुर्जनता का भाव,हाय,पैसा! हाय पैसा!, दिल को दिल से राह होती है, मित्र और मित्रता, दूर-पास का लगाव-अलगाव, अपने - पराये का भेद, अति से सब जगह बचना चाहिए, भोजन मीठा नहीं- भूख मीठी होती है,दाढ़ी बढ़ा लेने पर सभी साधु नहीं बन जाते हैं, दो घरों का मेहमान भूखा मरता है आदि विषयों पर अपनी लेखनी चलाना कविता रावत के ही के ही बस की बात है।    लोक उक्ति में कविता की पाण्डुलिपि को आद्योपान्त पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि यह पुस्तक विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं  के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। विदूषी कवयित्री ने अपनी रचना का विषय चाहे जो भी चुना हो,मगर उसमें एक सन्देश अवश्य निहित होता है, जिसमें लौकिक व्यवहार भी निहित होता है। एक ऐसी कृति है जिसमें प्राकृतिक परिवेश के साथ-साथ साहित्य की उद्देश्यपरक सम्भावनाएँ प्रकट होती हैं।  उदाहरण के लिए अति से सब जगह बचना चाहिए रचना को ही लीजिए-
“प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।...”
     कविता रावत जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया हैवह अत्यन्त सराहनीय है।    मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक कविता रावत जी के साहित्य से अवश्य लाभान्वित होंगे और उनकी यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।21 जनवरी, 2014
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
हिन्दी ब्लॉगर, कवि तथा साहित्यकार
खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड)
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