शुक्रवार, मार्च 08, 2013

"हृदय के उदगार की समीक्षा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

राजेश कुमारी का रचना संसार!
"हृदय के उद्गार"
         कुछ माह पूर्व बड़े पुत्र के यहाँ देहरादून गया था। जानी-मानी ब्लॉगर श्रीमती राजेश जी को जैसे ही यह पता लगा कि मैं देहरादून आया हुआ हूँ। वो उसी दिन दोपहर बाद अपनी ब्लॉगर सहेली डॉ.नूतन गैरौला को साथ में लेकर मुझसे मिलने के लिए चली आयीं। इसका एक कारण यह भी रहा होगा कि उन्हें अपनी पुस्तक हृदय के उद्गार मुझे भेंट करनी थी।
        मैं भी कितना आलसी रहा कि इस काव्य संग्रह के बारे में दो-शब्द भी न लिख पाया। आज समय मिला है तो अपनी भावनाओं को समीक्षा के रूप में अंकित कर रहा हूँ।
      पठनीय रचनाओं से सुसज्जित 172 पृष्ठों की इस पुस्तक को ज्योतिपर्व प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका मूल्य रु.299/- रखा गया है। जनसाधारण की सोच से परे इसका आवरण चित्र रमेश डोगरा ने तैयार किया है।
         विदूषी कवयित्री ने अपने काव्य संग्रह हृदय के उद्गार को रचनाओं के अनुसार (क) से लेकर (च) तक छः खण्डों में विभाजित किया है।
            खण्ड (क)  में स्नेह, प्रेम रस की 20 रचनाएँ लगाई गयी हैं-
        इस काव्य संग्रह को श्रीमती राजेश कुमारी जी ने अपनी ममतामयी माँ को समर्पित किया है और मां को नमन करते हुए माँ कैसे कर्ज चुकाऊँ शीर्षक से यह रचना रची है-
दूध तेरा मेरी रग-रग में
कैसे भूल जाऊँ
तेरी व्यधि हर लूँ मैं
या
जीवन औषधि बन जाऊँ
मैं कैसे कर्ज चुकाऊँ...
       इसी खण्ड से एक रचना और देखिए। जिसका शीर्षक है चंदा साजन”-
रजत हंस पर होकर सवार
रात गगन वत्स छत पर आया
देख वर्च लावण्य उसका
सुन री सखी वो मेरे मन भाया
वो समझा मैं सोयी थी
मैं सुख सपनों में खोयी थी
चूम बदन मेरा उसने
श्वेत किरण का जाल बिछाया
हिय कपोत उसने उलझाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया....
        “अटूट समर्पण नामक रचना में कवयित्री लिखती है-
उम्र की दहलीज है,
पर रात अभी बाकी है
ये तेरे-मेरे प्यार की
मिठास अभी बाकी है...
       खण्ड (ख) में कवयित्री ने नैतिक, प्रेरणादायक और सामाजिक कविताओं को स्थान दिया है। इसमें 43 रचनाओं ने स्थान पाया है। हृदय के उद्गार संकलन में हृदय के उद्गार नाम से भी शीर्षक रचना को भी रखा गया है। मेरे विचार से तो इसे इस संकलन के प्रारम्भ में ही होना चाहिए था। लेकिन जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि! शायद इसके पीछे भी कोई रहस्य तो छिपा ही होगा।
माना कि यहाँ ज़लज़ले
बेलै चले आते हैं
मैं रोक नहीं पाती
इन हृदय के उद्गारों को!...
       इसी खण्ड में  एक मार्मिक रचना आँखें भी है, जो हमें सोचने को विवश कर देती है। देखिए-
मैंने देखी झील सी निश्चल
नवल जीवन में जब आयीं आँखें
मैंने देखी अश्रुओं से भीगी
भूख से अकुलायी आँखें...
       सामाजिक प्रवेश से ओत-प्रोत कब तक जलो की कुछ पंक्तियाँ भी देखिए-
फर्ज़ के अलाव में कब तक जलो
परछाई भी कहने लगी इधर चलो...
      खण्ड (ग) में कवयित्री ने ग़ज़लें, नज़्म और शेर-ओ-शायरी का समावेश किया है इसमें छोटी-बड़ी मिला कर 28 रचनाओँ को स्थान मिला है। उदाहरण के लिए एक ग़ज़ल के चन्द अल्फाज़ देखिए-
अरमान घिट रहे हैं यूँ दर्दे अजाब में
ढूँढें कहाँ सुकूनेदिल हम इस शराब में
वो ले गया नींदें भी मेरी लूटकर देखो
कैसे यकीं हो अब वो आयेगा ख़्वाब में...
       इसी खण्ड से एक अशआर भी देखिए-
वो आसमां को छूने ही वाला था
कि ज़मीं खिसक गयी
लक्ष्य भेदने ही वाला था
कि नज़र बहक गयी
      संकलन के खण्ड (घ) में देशभक्ति तथा बच्चों के लिए 10 रचनाओं को स्थान दिया गया है।
       “विकसित देश रचना का एक अंश देखिए-
मन में गंगा हाथों में तिरंगा
ये संक्लप दुहराना होगा
तोड़कर स्वार्थ के घोरों को
देश को समृद्ध बनाना होगा...
       संकलन के खण्ड (ड.) में कवयित्री ने अपनी हास्य रस की तीन रचनाओं को स्थान दिया है।
     शायद वानरों के प्रकोप से दुखी होकर ही कवयित्री ने इस रचना को लिखा होगा। जय हनुमन्त रचना का एक अंश देखिए-
जय हनुमन्त अमंगलहारी
प्रभू तेरी सेना बड़ी दुखकारी
बगिया में उत्पात मचाये
फिर मुझको अँगूठा दिखाये...!
    “हृदय के उद्गार के अन्तिम खण्ड (च) में कवयित्री ने प्रकृति, पर्यावरण और ऋतु-त्यौहारों की 16 रचनाओं को स्थान दिया है।
उदाहरण के लिए पर्यावरण बचाओ नामक रचना का कुछ अंश देखिए-
हरे-भरे तुम पेड़ लगाओ
और उन्हीं से छैंया पाओ...
       इस कविता संग्रह को आत्मसात् करते हुए मैंने महसूस किया है कि कवयित्री ने इसमें जीवन से जुड़े लगभग प्रत्येक विषय पर अपनी लेखनी चलाई है। चाहे इनकी कलम से रचना निकले या मुँह से बात निकले वह अपने आप में कविता से कम नहीं होती है।
           अन्त में इतना ही कहूँगा कि इस पुस्तक के सृजनकर्त्री श्रीमती राजेश कुमारी घरेलू महिला होते हुए भी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। कुल मिलाकर यही कहूँगा कि हृदय के उद्गार एक पठनीय और संग्रहणीय काव्यसंकलन है।
        मेरा विश्वास है कि हृदय के उद्गार काव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि वसुन्धरा काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
        यह काव्य संकलन ज्योतिपर्व प्रकाशन, ज्योतिपर्व मीडिया एंड पब्लिकेशन, 99-ज्ञानखण्ड-2, इन्दिरापुरम, गाजियाबाद (उ.प्र.) से प्राप्त किया जा सकता है।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-(05943) 250129 मोबाइल-09368499921