स्वास्थ्यवर्धक
के नाम पर लूट!
आदरणीय
स्वामी जी!
आपकी
बात मानकर मैं स्थानीय पतंजलि क्रयकेन्द्र पर गया तो वहाँ 5 अनाजों से निर्मित
स्वास्थ्यवर्धक आटो का दाम पचास रुपये किलो था। इससे मेरा माथा ठनका कि चना के
छोड़कर ज्वार, बाजरा. मक्की तो गेहूँ से कम दाम वाले अनाज हैं, फिर
स्वास्थ्यवर्धक के नाम से बिकने वाला आटा इतना मँहगा कैसे हो गया?
हम
लोग चक्की का पिसा शुद्ध गेहूँ का आटा 17 रु. किलो लाते हैं और ब्राण्डेड पैक
आटा 18 रुपये किलो के हिसाब से मिलता है।
मैंने
बाजार से 2 किलो बाजरा 24 रुपये में, 2 किलो मक्का 24 रुपये में, 2 किलो ज्वार
20 रुपये में और दो किलो चना 90 रुपये में खरी दा और इसमें 15 रुपये किलो के भाव
से 10 किलो गेहूँ 150 रुपये में खरीद कर मिलया। पिसाई के 40 रुपये भी इसमें जोड़
दे तो 20 किलो आटे का दाम 348 रुपये ही हुआ। जिसकी शुध्दता की भी गारंटी है। अर्थात
यह स्वास्थ्यवर्धक आटा मुझे 17 रुपये पचास पैसे किलो पड़ा। फिर आपका यही आटा
पचास रुपये किलो कैसे हो गया? क्या आम आदमी के बजट का यह आटा है? स्वास्थ्यवर्धक
नाम पर 50रुपये किलो आटा बेचना तो सरासर लूट है। क्या यही स्वदेशी आन्दोलन है। यह
तो वही बात हुई कि स्वदेशी पहनो और गांधी जी के नाम से चल रहे श्री गान्धी आश्रम
में अपनी जेब कटावा कर घर आ जाओ।
आप
राजनीतिक दलों को भ्रष्ट करार देते हैं लेकिन नैतिकता की आड़ में आप सन्यासी
होकर अन्धाधुऩ्ध कमाई करने में लगे हो।
आप
भी तो जनता की भावनाओं को भुनाकर अपने बन्धु-बान्धवों को सीधे रूप में धनवान
बनाने में तुले हो! फिर क्या अन्तर रह जाता है आपमें और आपके द्वारा कथित भ्रष्ट
राजनेताओं में।
स्वामी
जी!
मैं आप अपने प्रवचन में अक्सर कहते हैं कि आपने घोर गीपबी का जीवन जिया है।
लेकिन अब आपके पास परोक्षरूप में अकूत सम्पत्ति है। इसका राज़ मेरी तो समझ में
अब खूब आ गया है। बहुत से उद्योगों का स्वामी आपका ट्रस्ट है। विशाल और भव्य
पतंजलि योग संस्थान का भवन इसका गवाह है। जहाँ अपने इलाज के लिए जाने वाले
रोगियों के लिए होटलों से भी मँहगे हैं। जिनमें ठहरना आप आदमी के बस की बात नहीं
है। आपने गरीवी देखी है तो गरीबों के लिए इस चिकित्सापीठ में कौन सी सुविधा
प्रदत्त है। मैंने आपके चिकित्सकों और कर्मचारियों का भी व्यवहार देखा है। जहाँ
आम आदमी को दुत्कार धनवानों को प्यार के अलावा कुछ भी तो नहीं है।
अब
समय आ गया है कि जनता कथित भ्रष्ट नेताओं से तो सावधान हो ही और साथ में आपके
जैसे गेरुए वस्त्रधारी बाबाओं से भी सावधान रहें!
|
किस किस से रहेंगे सावधान
जवाब देंहटाएंइस देश में कौन नहीं है लुटेरा
मुझे मौका मिला नहीं है अब तक
वरना मैं भी नहीं छोड़ने वाला
मिलता है जैसे ही कोई
मौका एक सुनहरा !
" स्केम स्केम स्केम.... सुनकर कान पक गये !!! "
हटाएं" क्या किया जाये ? "
" बदले मे ऐसा कुछ करो कि स्केम स्केम कहने वालों के मुंह पर पट्टी लग जाये "
" कुछ सूझता ही नही !! "
" सूझने का क्या, कोई जनता इतनी जागरूक है ? अरे लगा दो आरोप कि बाबा ढोंगी है, मिलावट करता है, महंगा बेचता है... !! जनता मे अपने बन्दे भी हैं .. उसे महंगा साबित कर ही देंगे "
" साबित करने वाले पढे लिखे होने चाहिये "
" हाँ, ऐसे भी हैं ! फिक़्र न करो"
" बस तो ठीक है,शुरु करो... पहले आटे से शुरु करो "
" जी !आज्ञा शिरोधार्य है !!"
यह पूंजीवाद का नया चेहरा है. बाबागीरी का चोखा धंधा भारत में खूब चलता है. लागत शून्य मुनाफा असीमित. साधु वही जिसके पास शैतानी का अवसर नहीं.
जवाब देंहटाएंzamana hi loot khasot ka aagya hai,Adam Gondvi ne karara vyang karte huye ikha tha ki,-chori n kare daka n dale to kya sharaft ubal kr khayenge...
जवाब देंहटाएंबेचारे मनमोहन ! उनसे न तो उबालते बनता है न उगलते !! शराफत इतनी कटींली पहले तो न थी !
हटाएंमैं आप अपने प्रवचन में अक्सर कहते हैं कि आपने घोर गीपबी(गरीबी ) का जीवन जिया है।
जवाब देंहटाएंये ब्रांड का ज़माना है बाबा राम देव एक ब्रांड हैं .खुद में एक फिनोमिना हैं इतने कम समय में इस आदमी ने भारत को ग्लोबीय नक़्शे पे उतार दिया .
आप इनका आंवला सत ख़रीदे ९० रूपये का एक लिटर अब दूसरे डाबर आदि के दामों से तुलना कीजिए .खर्चा पैकेजिंग का भी होता है फिर इतने लोगों को उद्योग मिला हुआ है इस एंटरप्राइज़ में .बाबा रामदेव पब्लिक के आदमी में हैं .
जादू वही है जो सिर चढ़के बोलता है आज पार्क में ८० साला बूढी भी नाखूनों को परस्पर घिस्से मार रही होती है .पार्कों में लोग योग आसन करतें हैं .
आयुर्वेद को एक भूमंडलीय नक़्शे पे ये आदमी ले आया .
इड देश में अब एक "ब्रीफ" भी हजार दो दो हज़ार से शुरु होकर पांच पांच दस दस हजार का मिलता है ब्रांडडीड.आप एक किलो आटे को लेके रो रहें हैं .
सारा चक्कर ब्रांड का है .
अब कितने घरों में हिन्दुस्तान के गेंहू खरीद के पहले धोया सुखाया जाता है फिर पिसवाया जाता है ?
१७ रूपये किलो वाले आटे में सुर्सिरी भी सत्तर हजार होतीं हैं .पेकिंग का कोई भरोसा नहीं कौन से युग की निकले .
निशाना ही बनाना है तो अंकल चिप्स को बनाइए .कुरकुरे को बनाइए .
अक्सर तथाकथित बुद्धिजीवियों को ईर्ष्यारोग के चलते उचित अनुचित तथा देशानुराग या कामानुराग का भेद याद नही रहता । श्री मयंक जी के साथ भी अगर ऐसा हुआ है तो आश्चर्य नही । ( कामानुराग इसलिये लिखा क्योंकि एक अन्य पोस्ट मे माननीय चिरंजीवी तिवारी जी के कामानुराग के समर्थन मे श्री मयंक कुछ बज़नी तर्क रखते देखे गये हैं ) श्री मयंक यह भी बताएँ कि स्वस्थ रहने की सरल और बिना लागत वाली योग पद्धति को देश मे पहले पहल इतना अधिक लोकप्रिय किसने किया ? सडक पर गुज़रती एक अच्छी कार श्वानों को अक्सर चिढ दे जाती है जबकि उसका मूल्य तो पारखी ही जानते हैं । श्री मयंक जिन शब्दों और तर्कों का प्रयोग करते हैं उससे लगता है कि बाबा रामदेव नामक व्यक्ति विदेशी हो और अपने उत्पादों से देश को खरीद कर विदेशियों के हाथों गुलाम करने जा रहा हो । अब, देश के वर्तमान राजनीतिक / आर्थिक पटल पर हो रही गतिविधियों ठीक से नज़र डाल तो लें कि देश को कौन गुलाम बनाने जा रहा है । अंग्रेजों के आगमन के समय भी यदि इस प्रकार के मानसिक पंगु नही होते, देशभक्त-शिक्षित होते तो लम्बा संघर्ष नही सहना पडता । सरदार भगत सिंह को फांसी पर नही झूलना पडता । जय हो ।
हटाएंमैं आपसे काफी हद तक सहमत हूँ, यहाँ राष्ट्र का दुर्भाग्य है की सामान्य गलतियों, जो की मानवीय प्रवृत्ति भी हो सकती है, के लिए हम एक राष्ट्रीय स्तर पर हो रही एक महत्वपूर्ण परिवर्तन, जागरण को अपनी एक छोटी सी भूल से ध्वस्त करने पर आमादा है, आज हम बुरी तरहां फँस गए है, और जब निकलने का रास्ता दिख रहा है, तो हमारी आपसी फूट हमे फिर उसी गर्त में धकेल देगी। आज राष्ट्र लगभग गुलाम ही है, पर हमारी दृष्टि इतनी कुंठित हो चुकी है, की हम इसे देख ही नहीं पा रहे है।
हटाएंआदरणीय आपने बिलकुल सही कहा है
जवाब देंहटाएंमै भी बाबा जी की बात का कायल हुवा करता था
परन्तु एक दिन पास के दूकान से उनकी कंपनी का
आंवले की केंडी खरीदा तो दाम देखकर दंग रह गया है
आम केडी से ३०% महँगी थी ये तो सरा सर लूट है
बाद में उनके सामान को बेचने वाले दुकान दार से बात किया तो
पता चला की ये सब धंधे की बात है...विदेशी कंपनी वाले विज्ञापनों से ठग रहे है....तो कोई राष्ट्रीयता को भुना कर कमा रहा है
देखना यदि इनका ये व्यापार फलता फूलता रहा तो आने वाले कल में
शायद इनसे बड़ा कोई धनी नहीं होगा
कमाओ ईमानदारी से ....बेवकूफ बना कर लूटो मत मेरे बाबा जी
आप उनकी केंडी खरीदने गये ही क्यों ? बाज़ार मे इतनी मल्टिनेशनल कम्पनियाँ भांति भाँति के उत्पाद बेंच रही है; फिर आप पतंजली के उत्पाद पर ही क्यों मोहित हुए ? सस्ते और देशी का मोह छोडिये और विदेशी अपनाइये ताकि आपको फिज़ूल कुढन तो न हो !!! जय हो !!!
हटाएंसर, परस्पर तुलना तो बाज़ार मे बिक्री के लिये तैयार उत्पादों से होती है उन्हे घर मे प्रोसेस करके होनी वाली बचत से नही । ज़रा इस श्रम और समय का मूल्य भी जोडिये जो आप इस मिश्रित आटे को तैयार करने मे लगा रहे हैं । आपने कभी मल्टिनेशनल उत्पादों से तुलना करके देखा है ? उदाहरण के तौर पर, अमेरिका की मल्टिनेशनल कम्पनी 'फोर एवर लिविंग (इंडिया) लि. का एलो वेरा जूस 900 रु. . प्रति लीटर है जो पतंजली केन्द्र पर एक तिहाई दाम यानि रु. 300.00 मे उसी गुणवत्ता के साथ मिलता है । यदि डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी आटे को इस प्रकार प्रोसेस कर आधे या और भी कम दामों मे बेचने को तैयार हैं तो हम भी उन्हे खरीदने को तैयार हैं । शुभ हो । जय हो ।
जवाब देंहटाएं'स्वदेशी के कटोरे' में,'सोने' की बरसात'!
जवाब देंहटाएंहम इस बात को कैसे करें आत्मसात !!
बहुत साहसी क़दम है मयंक जी !हम आप से व्सहमत हैं |
सर बिल्कुल सही कहा आपने,
जवाब देंहटाएंपांच रुपये का चूरन 50 रुपये में बेचते हैं और स्वदेशी की बात करते हैं। काश लोग समझ सके इनकी असलियत
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
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अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजिसको देखो जनता को लुटने में लगा है . इस साधू को भी पैसे की इतनी भूख क्यों है पता नहीं .
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मेरे जानकारी है, पतंजलि निर्मित दो प्रकार का आटा बाजार में उपलब्ध है, एक गेंहू का, दूसरा पतंजलि नवरत्न (जिसमे ९ प्रकार के अनाज है, १ गेंहू, २.जौ ३. चौलाई ३. मक्का ४. मक्का ५. जवार ६. चना ७. सिंघारा ८. सोयाबीन व ९. बाजरा)।
जवाब देंहटाएंहो सकता है इसकी कीमत बाजार में साधारणतया उपलब्ध आटे से अधिक हो, पर सवाल गुणवत्ता का है, हो सकता है जैविक खाद पर आधारित उपज हो, कारण जो भी होगा उसका उत्तर वे ही दे सकते है, पर हमें व्यर्थ इल्जाम लगाने ने बचना चाहिए।
आज राष्ट्र उनके द्वारा योग व स्वदेशी आंदोलन को इस प्रकार से प्रचारित और प्रसारित करने के लिए आभारी है, ये कोई साधारण काम नहीं है, उन्होंने योग के प्रयोग द्वारा, प्रतयक्ष प्रमाण द्वारा, लोगों, डॉक्टरों को अनुभव कराया, अलोपथी को सामने से चुनौती दी, और सबक भी सिखाया, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उटपटांग उत्पाद, प्रचार, कीमत के टक्कर में सुद्ध स्वदेशी विकल्प प्रस्तुत किया।
हो सकता है, कहीं कुछ कमी रहा रही हो, तो हमें समय देकर उसे ठीक करने का अवसर देना चाहिए, राष्ट्र में अपने संस्कृति के प्रति जो लहर और उमंग जगी है, उसको सहयोग देना चाहिए, पैसे तो सभी कमाते है, पर कुछ धर्म से कमाते है कुछ अधर्म से।