शनिवार, जुलाई 28, 2012

"उज्जवला की बातें करें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मा. पं. नारायणदत्त तिवारी जी को मैं अपना राजनीतिक गुरू मानता हूँ। सभी लोग जानते हैं कि उन्होने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया।
     इसके बाद उन्होंने आजाद भारत की सियासत में पदार्पण किया। वे उत्तर-प्रदेश जैसे बड़े राज्य के तीन बार मुख्यमन्त्री रहे, केन्द्र सरकार में भी विभिन्न प्रमुख मन्त्रालयों के वे मन्त्री रहे। उनके लम्बे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उत्तराखण्ड का भी मुख्यमन्त्री बनाया, जिसे उन्होंने तमाम अन्तरविरोधों को झेलते हुए अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल को बखूबी निभाया। जीवन के अन्तिम पड़ाव में उन्होंने आन्ध्र-प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के भी पद को सुशोभित किया। अतः तिवारी जी की राजनीति का वटवृक्ष कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि पं. नारायणदत्त तिवारी जैसा विनम्र राजनीतिज्ञ लाखों में एक होता है।
    जो घटनाक्रम तिवारी जी के साथ हुआ वह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि लोगों में सहिष्णुता नाम की कोई चीज रह ही नहीं गयी है। अगर अतीत में झाँककर देखा जाये तो देवता और ईश्वर की संज्ञा को धारे हुए लोग भी काम के वशीभूत होकर ऐसे कर्मों में लिप्त रहे हैं। यदि तब से लेकर अब तक का आकलन किया जाये तो कौरव-पाण्डव, ऋषिविश्वामित्र, सूर्यभगवान और कुन्ती आदि भी इसमें लिप्त पाये गये हैं।
आजाद भारत की राजनीति की बात करें तो पं. नेहरू और उनकी सारी पीढ़ियाँ, अटल बिहारी वाजपेई, मुलायमसिंह यादव, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, माधवराव सिंधिया आदि (किस-किसके नाम लूँ) के किस्से किसी से छिपे नहीं है। उद्योगपतियों और फ़िल्मी सितारों की बाते भी किसी से छिपी नहीं हैं।
    अब स्व.शेरसिंह की पुत्री उज्जवला की बात करें तो सरासर गलती उज्जवला की ही है। एक शादीशुदा महिला ने उस समय के जाने-माने राजनीतिज्ञ को अपने जाल में फँसाया और उसके साथ हमबिस्तर हुई। क्या यह सच नहीं है। क्या तिवारी उसके घर बलात्कार करने गया था। इस सेक्स के खेल में यदि सन्तान हो गई तो गलती किसकी है।
   यदि इस कड़ी में पत्रकार दयानन्द पाण्डेय जी के लेख का कुछ अंश इसमें मिल करूँ तो कोई विसंगति नहीं होगी-
   माफ़ कीजिए उज्वला जी, आप किसी से अपने बेटे का पितृत्व भी मांगेंगी और उस की पगडी भी उछालेंगी? यह दोनों काम एक साथ तो हो नहीं सकता। लेकिन जैसे इंतिहा यही भर नहीं थी। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी को भी आप ने बार-बार अपमानित किया। बांझ तक कहने से नहीं चूकीं। आप को पता ही रहा होगा कि सुशीला जी कितनी लोकप्रिय डाक्टर थीं। बतौर गाइनाकालोजिस्ट उन्हों ने कितनी ही माताओं और शिशुओं को जीवन दिया है। यह आप क्या जानें भला? रही बात उन के मातृत्व की तो यह तो प्रकृति की बात है। ठीक वैसे ही जैसे आप को आप के पति बी.पी. शर्मा मां बनने का सुख नहीं दे पाए और आप को मां बनने के लिए तिवारी जी की मदद लेनी पड़ी।
खैर, हद तो तब हो गई कि जब आप एक बार लखनऊ पधारीं। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी का निधन हुआ था। तेरही का कार्यक्रम चल रहा था। आप भरी सभा में हंगामा काटने लगीं। कि पूजा में तिवारी जी के बगल में उन के साथ-साथ आप भी बैठेंगी। बतौर पत्नी। और पूजा करेंगी। अब इस का क्या औचित्य था भला? सिवाय तिवारी जी को बदनाम करने, उन पर लांछन लगाने, उन को अपमानित और प्रताणित करने के अलावा और भी कोई मकसद हो सकता था क्या? क्या तो आप अपना हक चाहती थीं? ऐसे और इस तरह हक मिलता है भला? कि एक आदमी अपनी पत्नी का श्राद्ध करने में लगा हो और आप कहें कि पूजा में बतौर पत्नी हम भी साथ में बैठेंगे !
उज्वला जी, आप से यह पूछते हुए थोड़ी झिझक होती है। फिर भी पूछ रहा हूं कि क्या आप ने नारायणदत्त तिवारी नाम के व्यक्ति से सचमुच कभी प्रेम किया भी था? या सिर्फ़ देह जी थी, स्वार्थ ही जिया था? सच मानिए अगर आप ने एक क्षण भी प्रेम किया होता तिवारी जी से तो तिवारी जी के साथ यह सारी नौटंकी तो हर्गिज़ नहीं करतीं जो आप कर रही हैं। जो लोगों के उकसावे पर आप कर रही हैं। पहले नरसिंहा राव और उन की मंडली की शह थी आप को। अब हरीश रावत और अहमद पटेल जैसे लोगों की शह पर आप तिवारी जी की इज़्ज़त के साथ खेल रही हैं। बताइए कि आप कहती हैं और ताल ठोंक कर कहती हैं कि आप तिवारी जी से प्रेम करती थीं। और जब डाक्टरों की टीम के साथ दल-बल ले कर आप तिवारी जी के घर पहुंचती हैं तो इतना सब हो जाने के बाद भी सदाशयतावश आप और आप के बेटे को भी जलपान के लिए तिवारी जी आग्रह करते हैं। आप मां बेटे जलपान तो नहीं ही लेते, बाहर आ कर मीडिया को बयान देते हैं और पूरी बेशर्मी से देते हैं कि जलपान इस लिए नहीं लिया कि उस में जहर था। बताइए टीम के बाकी लोगों ने भी जलपान किया। उन के जलपान में जहर नहीं था, और आप दोनों के जलपान में जहर था? नहीं करना था जलपान तो नहीं करतीं पर यह बयान भी ज़रुरी था?
क्या इस को ही प्रेम कहते हैं?”

13 टिप्‍पणियां:

  1. सर लेकिन एक बात साफ है कि नारायणदत्त तिवारी जी को तभी इस को सामाजिक तौर पर लेना चाहिए था, आखिर येंसी क्या आन पड़ी कि कोर्ट कचहरी में समय और इज्जत ख़राब करनी पड़ी , समाज में तो पहले से ही थी और फिओर नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने भी तो नारायणदत्त तिवारी जी कि हकीकत आपने गाने में बयां कि थी आखिर क्या वो सब झूठ है ....मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि एक हाथ से ताली नहीं बजती

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    1. उफ्फ ! बेचारी यह पोस्ट !! क्या भला करेगी ! अरे, यहाँ तो लिखने मे सरासर चूक हुई है ! लिखना तो यह चाहिये था कि आखिर हमारे चिरयुवा नेता कौन सी बूटियाँ खाते थे ! उन्होने उस मोहतरमा को कैसे रिझाया ? विश्वामित्र , व्यास , नेहरू की तरह हम कौन से तरीके अपनाएँ कि इस प्राचीन बहुगामी संस्कृति का अधिक से अधिक विस्तार हो !! सिर्फ इस आलेख के लेखक के ही क्यों वे सब के आदर्श बने ऐसा जतन ज़रूरी था । प्रतीक्षा करेंगे कि अगली पोस्ट मे या इस पोस्ट के कमेंट मे रूप मे कुछ फार्मूले देश के बुज़ुर्ग पीढी के लाभार्थ पेश किये जायेँ !

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  2. प्रभावशाली लेख...
    बेचारे नारायण दत्त तिवारी , एक मानवीय भूल और इस उम्र में जिस तरह छीछालेदर की जा रही है , वह शर्मनाक है ! वे अपना स्पष्टीकरण भी नहीं दे पा रहे हैं !
    नक्कारखाने में आपकी यह पोस्ट आवश्यक है !

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  3. हमें भी तिवारी जी से सहानुभूति है . एक व्यक्तिगत मामले को सार्वजनिक करना कहीं न कहीं कोई छुपा हुआ एजेंडा ही दर्शाता है .
    सारा प्रकरण अत्यंत खेदपूर्ण है .

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  4. उसने चोरी की थी, उसने डकेती डाली थी, उस नेता ने भी तो घोटाले किये थे तो मैंने या मेरे आदर्श नेताजी ने कर लिया तो क्या हुआ ?
    इस तरह के तर्क देकर किसी के कुकृत्यों को जायज करार नहीं दिया जा सकता|
    तिवारी जी लम्पट थे उन्होंने को बोया वही काटा इसलिए इनके साथ कैसी सहानुभूति ?
    हां ! जहाँ टक इनकी एक तरफा आलोचना हो रही है वह गलत है वह महिला भी एक नम्बरी लम्पट थी उसने तो बेशर्मी की हदें ही पार की है आलोचना उसके चरित्र की भी होनी चाहिए जबकि एक तरफा हो रही है वो ठीक नहीं !!

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    1. उफ्फ ! बेचारी यह पोस्ट !! क्या भला करेगी ! अरे, यहाँ तो लिखने मे सरासर चूक हुई है ! लिखना तो यह चाहिये था कि आखिर हमारे चिरयुवा नेता कौन सी बूटियाँ खाते थे ! उन्होने उस मोहतरमा को कैसे रिझाया ? विश्वामित्र , व्यास , नेहरू की तरह हम कौन से तरीके अपनाएँ कि इस प्राचीन बहुगामी संस्कृति का अधिक से अधिक विस्तार हो !! सिर्फ इस आलेख के लेखक के ही क्यों वे सब के आदर्श बने ऐसा जतन ज़रूरी था । प्रतीक्षा करेंगे कि अगली पोस्ट मे या इस पोस्ट के कमेंट मे रूप मे कुछ फार्मूले देश के बुज़ुर्ग पीढी के लाभार्थ पेश किये जायेँ !

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  5. आज उचित है तिवारी जी रोहित को सार्वजानिक आयोजन में स्वीकार लें और और इस दुर्भागय्पूर्ण प्रकरण का पटाक्षेप करें -उज्ज्वल के साथ क्या करें ? वह भी अब तलाकशुदा है -कहीं तलाकशुदा होने के बाद उनका यह नया आशियाना ढूँढने का तो उपक्रम नहीं है ?

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  6. तिवारी जी अगर इस पूरे मामले में दोषी हैं तो उज्जवला शर्मा क्या दूध की धोई हुई हैं?
    यह सवाल कोई नहीं कर रहा है।

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  7. तिवारी जी से इतनी सहानूभूति आखिर क्यों? दोनों ही दोषी हैं?

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  8. एन. डी. तिवारी एक बड़ी राजनीतिक हस्ती हैं। उनसे जुड़कर जो फ़ायदे उज्जवला ने उठाये हैं, उनकी ख़ातिर उसने उस नुक्सान की अनदेखी कर दी, जो उसे आज पहुंच रहा है।
    लालच का अंजाम आज दोनों को बुढ़ापे में मिल रहा है। करते मां बाप हैं और उनके कर्मों को भुगतती है उनकी औलाद। रोहित को देखकर यह बात बख़ूबी समझ में आ जाती है।
    सवाल यह उठता है कि उज्ज्वला ने बिना शादी के केवल वादे पे शारीरिक सम्बन्ध बनाये ही क्यों?
    गलत तरीके से बनाये रिश्तों का अंजाम यही हुआ करता है जो रोहित और उज्ज्वला के मामले में हुआ | रोहित का दर्द अपनी जगह सही है लेकिन उसके ज़िम्मेदार उसके माता और पिता दोनों बराबर हैं |
    यह समस्या केवल उज्ज्वला की ही नहीं है | आज हर रोज़ शादी के वादे पे शारीरिक संबंधों कि खबरें आया करती हैं | ना जायज़ औलाद का कूड़े दान में मिलना, या गर्भपात करवाना भी आम हो गया है | ऐसी गलती का ज़िम्मेदार केवल महिला या पुरुष को बना देना सही नहीं |

    शादी के पहले शारीरिक सम्बन्ध बना लेना दोनों कि मिली जुली गलती है और सजा मिलती है जन्म लेने वाली औलाद को | इसका हल यही है सभी लोग जायज़ और नाजायज़ का फर्क समझें | और ऐसा कोई काम न करें जिसे समाज के सामने सर उठा के बता न सकें |

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  9. उफ्फ ! बेचारी यह पोस्ट !! क्या भला करेगी ! अरे, यहाँ तो लिखने मे सरासर चूक हुई है ! लिखना तो यह चाहिये था कि आखिर हमारे चिरयुवा नेता कौन सी बूटियाँ खाते थे ! उन्होने उस मोहतरमा को कैसे रिझाया ? विश्वामित्र , व्यास , नेहरू की तरह हम कौन से तरीके अपनाएँ कि इस प्राचीन बहुगामी संस्कृति का अधिक से अधिक विस्तार हो !! सिर्फ इस आलेख के लेखक के ही क्यों वे सब के आदर्श बने ऐसा जतन ज़रूरी था । प्रतीक्षा करेंगे कि अगली पोस्ट मे या इस पोस्ट के कमेंट मे रूप मे कुछ फार्मूले देश के बुज़ुर्ग पीढी के लाभार्थ पेश किये जायेँ !

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