शनिवार, जून 05, 2010

‘‘बाबा नागार्जुन के तर्क ने मुझे निरुत्तर कर दिया था।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

“बाबा नागार्जुन की संस्मरण शृंखला-11”


26 मई 2010 से 26 मई 2011 तक 
बाबा नागार्जुन का जन्म-शती वर्ष मनाया जाएगा! 
इस अवधि में आप भी बाबा के सम्मान में 
अपने स्तर पर कोई आयोजन अवश्य करें!
समय पर सूचना देंगे तो
मैं भी सम्मिलित होने का प्रयास करूँगा!

[n.jpg]बाबा नागार्जुन की तो हर बात निराली ही थी।
वे जो कुछ बोलते थे। तर्क की कसौटी पर कस कर बहुत ही  नपा तुला ही बोलते थे।
बात 1989 की है। उन दिनों मेरे एक जवाँदिल बुजुर्ग मित्र ठा. कमला कान्त सिंह थे, इनका खटीमा शहर में ‘होटल बेस्ट व्यू’ के नाम से एक मात्र थ्री स्टार होटल था। ये बाबा नागार्जुन के हम-उम्र ही थे। बिहार से लगते हुए क्षेत्र पूर्वी उत्तर-प्रदेश के ही मूल निवासी थे।
बाबा से मिलने अक्सर आ जाते थे।
एक दिन बातों-बातों में ठाकुर साहब को पता लग ही गया कि बाबा मीट भी खा लेते हैं। बस फिर क्या था, उन्होंने बाबा को खाने की दावत दे दी।
बाबा ने कहा- ‘‘ठाकुर साहब! मैं होटल का मीट नही नही खाता हूँ। घर पर ही मीट बनवाना।’’
शाम को ठाकुर साहब ने बाबा को बुलावा भेज दिया।
मैं बाबा को साथ लेकर ठाकुर साहब के घर गया।
अब ठा. साहब ने अपनी कार में बाबा को बैठाया और अपने होटल ले गये।
बस फिर क्या था?
बाबा बिफर गये और बड़ा अनुनय-विनय करने पर भी बाबा ने ठाकुर साहब की दावत नही खाई और होटल से वापिस लौट आये। मेरे घर पर खिचड़ी बनवा कर बडे प्रेम से खाई।
मैंने बाबा से पूछा- ‘‘बाबा! आपने ठा. साहब की दावत क्यों अस्वीकार कर दी।’’
बाबा ने कहा- ‘‘शास्त्री जी! मैंने ठा. साहब से पहले ही कहा था कि मैं होटल का मीट नही खाता हूँ।’’
मैंने प्रश्न किया- ‘‘ बाबा! होटल में क्यों नही खाते हो?’’
बाबा बोले- ‘‘अरे भाई! होटल के खाने में घर के खाने जितना प्यार और अपनत्व नही होता है। प्यार पैसा खर्च करके तो नही खरीदा जा सकता।’’
बाबा के तर्क ने मुझे निरुत्तर कर दिया था।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बाबा नागार्जुन की यह पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं ..." चन्दू मैने सपना देखा ,लाये हो तुम नया कलैंडर / चन्दू मैने सपना देखा ,तुम हो बाहर मैं हूँ अन्दर / चन्दू मैने सपना देखा ,अमुआ से पटना आये हो / चन्दू मैने सपना देखा ,मेरे लिये शहद लाये हो ...."
    सही है प्यार और अपनत्व तो घर के खाने में ही होता है और शहद सी मिठास भी ।
    बाबा को हम लोग भी इसी तरह याद करते हैं ।

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  2. संस्मरण के लिए आभार. घर का कोई मुकाबला नहीं.

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  3. "प्यार पैसा खर्च करके तो नही खरीदा जा सकता।’’

    Bilkul, aur jab babaa ne pahle hee unhee apnaa aagrh bataa diyaa thaa to yah unkaa anaadar thaa !

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  4. सच कहा……………………"प्यार पैसा खर्च करके तो नही खरीदा जा सकता।’’
    अच्छी शिक्षा दी है।

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  5. बहुत सुंदर ओर सही बात कही, घर के खाने मै प्यार ओर अपना पन होता है, ओर होटल के खाने मै घमंड धन्यवाद

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  6. अच्छी शिक्षा के साथ बेहतरीन प्रस्तुती! बहुत अच्छा लगा!

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