मंगलवार, जून 02, 2009

‘‘अपना काम करने में शर्माना नही चाहिए’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मय्रक’ )

(मेरे 88 वर्षीय पिता श्री घासीराम जी आर्य)
गुरूनानक देव जी की कर्मस्थली नानकमत्ता साहिब में जाने का आज अचानक ही कार्यक्रम बन गया। नानकमत्ता खटीमा से दिल्ली मार्ग पर 15 किमी की दूरी पर है।
लगभग पाँच वर्ष पूर्व मैंने यहाँ पाँच-छः कमरों का मकान बनाया था। इसके चारों ओर हरे-भरे खेत हैं। इस भवन का नाम भी मैंने अपनी आशा के अनुरूप तपस्थली रखा था।
अपने गृहस्थी जीवन की झंझावातों के चलते इस भवन में कभी-कभी ही जाना होता है। आज यहाँ आया भी था। मेरे साथ मेरी पाँच वर्षीया पौत्री प्राची, श्रीमती जी और पिता जी भी थे।
मकान काफी दिनों से बन्द था, इसलिए इसके आँगन में जगह-जगह घास उग आयी थी। मेरी श्रीमती जी ने कमरों की साफ सफाई तो कर दी पर आँगन में उगी घास छीलने की समस्या थी।
मैं पास-पड़ोसियों से कह ही रहा था कि कोई मजदूर 2 घण्टे के लिए मिल जाये तो आँगन की सफाई हो जाये।
घर में आकर जब देखा तो पिता जी खुरपी लेकर घास छीलने में लगे थे। उन्होंने एक घण्टे में ही पूरे आँगन की सफाई कर दी थी।
सत्तासी-अट्ठासी वर्ष की आयु में भी उनके अन्दर काम करने की ललक देख कर मैं दंग रह गया।
मैंने पिता जी को काफी मना किया कि आप थक जाओगे। इस तरह का काम करने से हमारी पोजीशन खराब होती है।
पिता जी ने मुझे प्यार से अपने पास बैठाया और कहा-
‘‘बेटा! अपना काम करने में शर्माना नही चाहिए।"

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...हम सब के लिए अनुकरणीय प्रसंग...बुजुर्गों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है...नमन आप के पिता श्री को...
    नीरज

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  2. इस प्रसग के माध्यम से कितनी अनुकरणीय बात कही आपने.....आभार

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